Home कविताएं ” जरा सोचें ” ! कुछ छंद !

” जरा सोचें ” ! कुछ छंद !

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[1]

“जिस्म  सवारने  से  क्या  होगा” ,” एक  दिन  मिट्टी  में  मिल  जाएगा” ,
“संवारना है तो अपनी आत्मा को सुधारो”, “प्रभु के घर उसको ही जाना है “|

[2]

“मंदिर  में प्रवेश  मुफ्त  है ” “फिर  भी  वहाँ  मन  नहीं  लगता” ,
“क्लब  में  दौलत  लगती  है” ,” भाग-भाग कर जाते  हैं  सभी “,
“बड़े बेशुकरे हैं लोग “, “सही राह पकड़ने में भी हिचकिचाते हैं “,
“बेहियाई  का  दामन  पकड़  कर  ,” ” रास्ते  में  डगमगाते  हैं ” |

[3]

” कभी खुद के लिए तो कभी अपनों के लिए मुस्कराइए” ,” बस  मुस्कराइए “,
“आनंद के छण खुद नहीं आते “,” छणों को पकड़ने मे हिमारत होनी चाहिए ” |

[4]

” तू  ख़्वाहिशों  का  पुलिंदा  है “,” उम्मीदों  से  घायल   है “,
“गलतफहमी में जीता है”,”मरहम कभी नहीं होता तुझ पर” ,
“खुशियाँ बिकती नहीं देखी कभी”,”गमों  से घिरा  रहता  है” ,
” कहीं  और  बसेरा  बना  ले  ” ” वो  परिंदा  भी  नहीं  है  तू  ” |

[5]

” जब  कोई  मीठी  बातें  करके  गुदगुदी  मचाता  है “, 
“ऐसा लगता है” “उसने खून-दान कर दिया मुझको” |

[6]

मित्रता :-
” मित्रता , जीवन के  सात रंगों  से सजी रहती  है — ‘ अहसास ‘, ‘ प्यार ‘, 
“उदासी ‘, ‘ खुशियाँ ‘ , ‘ सच्चाई ” , ” विश्वास ” और ” आपसी सम्मान ” |

 

 

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