[1]
जरा सोचो
‘सत्य’ को ‘सत्य’-‘ साबित करना’ बेहद कठिन,
‘झूठ’ को ‘सौ बार’ बोलो,’सत्य’ समझा जाएगा !
[2]
जरा सोचो
जब ‘दर्द पर दर्द’ की परतें चढ़ी , तब ‘ होंश ‘ में आए ,
‘किस्मत’ से ‘हम’ सबके हो गए ,पर ‘हमारा’ कोई न था |
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जरा सोचो
बड़ी हसीन ख़्वाहिश है मेरी , ‘जहन ‘ में उतार जाओ ,
‘बेरुखी के लम्हे’ आज तक हमें जीने नहीं देते |
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जरा सोचो
तुझे ‘मुस्कराता’ देखने की ‘आदत’ सी हो गयी है आजकल ,
‘उदास’ हो कर देखना ‘ तेरा’ , मेरा दिल ‘ कुरेद ‘ देता है |
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जरा सोचो
हम ‘दिलों’ में ‘पत्थर’ का नहीं , ‘प्यार का घर’ बनाते हैं ,
कभी किसी को ‘रुलाते’ नहीं, ‘यादों के दीये’ जला कर ही जाएंगे |
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जरा सोचो
‘दया-भाव’ कम तो हो सकता है ,आसानी से ‘प्रगट’ भी हो जाता है ,
परंतु ‘अहं-भाव ‘ ‘मुंह फुलाए’ मिलता है ,किसी का ‘भला’ नहीं होता |
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जरा सोचो
‘तन-मन’ ‘स्वस्थ’ रखना है तो ‘चलायमान’ बने रहो ,
‘ शांत-चित्त’ और ‘प्रसन्न-चित्त’, ‘ऊर्जा’ के बड़े श्रोत हैं |
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जरा सोचो
चलने के अनेक ‘रास्ते’ हैं फिर ‘इंतज़ार’ किसलिए ?
‘उठो’ , ‘कर्मठ’ बनों, ‘बदकिस्मती’ को काफूर कर डालो |
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जरा सोचो
‘जख्मों’ को गिनते रहोगे तो ‘ जिंदगी ‘ को ‘ढूंढते’ रह जाओगे ,
‘आज कैसे जीना है ‘ इसकी ‘तलाश’ रख,’कल का हिसाब’ भूल जा |
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जरा सोचो
कुछ चला- फिर रुका, ‘सोचा’ – शायद वो ‘ साथ’ चल देंगे ,
हुआ ऐसा नहीं, ‘अकेला’ ही बढ़ा, अब ‘जमाना’ साथ है मेरे |