Home ज़रा सोचो ‘जब ‘दर्द पर दर्द’ की ‘परतें’ चढ़ी,तब ‘होंश’ में आए- कुछ प्रेरणा के छंद |

‘जब ‘दर्द पर दर्द’ की ‘परतें’ चढ़ी,तब ‘होंश’ में आए- कुछ प्रेरणा के छंद |

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जरा सोचो

‘सत्य’ को ‘सत्य’-‘ साबित करना’ बेहद कठिन,
‘झूठ’ को ‘सौ बार’ बोलो,’सत्य’ समझा जाएगा !

[2]

जरा  सोचो 

जब  ‘दर्द  पर  दर्द’  की  परतें  चढ़ी , तब ‘ होंश ‘ में  आए  ,

‘किस्मत’  से  ‘हम’  सबके  हो  गए ,पर  ‘हमारा’  कोई न  था |

[3]

जरा  सोचो 

बड़ी  हसीन  ख़्वाहिश  है  मेरी , ‘जहन ‘  में  उतार  जाओ ,

‘बेरुखी   के   लम्हे’ आज  तक   हमें   जीने   नहीं   देते  |

[4]

जरा  सोचो 

तुझे  ‘मुस्कराता’  देखने  की  ‘आदत’  सी  हो  गयी  है  आजकल ,

‘उदास’   हो   कर   देखना  ‘ तेरा’ ,  मेरा  दिल ‘ कुरेद ‘ देता  है  |

[5]

जरा  सोचो 

हम  ‘दिलों’  में  ‘पत्थर’  का  नहीं , ‘प्यार  का  घर’  बनाते  हैं ,

कभी  किसी  को  ‘रुलाते’  नहीं, ‘यादों  के  दीये’  जला  कर  ही  जाएंगे |

[6]

जरा  सोचो 

‘दया-भाव’  कम  तो  हो  सकता  है ,आसानी  से  ‘प्रगट’  भी  हो  जाता  है ,

परंतु  ‘अहं-भाव ‘ ‘मुंह  फुलाए’  मिलता  है ,किसी  का  ‘भला’  नहीं  होता |

[7]

जरा  सोचो 

‘तन-मन’  ‘स्वस्थ’  रखना  है  तो  ‘चलायमान’  बने  रहो ,

‘ शांत-चित्त’  और ‘प्रसन्न-चित्त’, ‘ऊर्जा’  के  बड़े  श्रोत  हैं |

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जरा  सोचो 

चलने  के  अनेक  ‘रास्ते’  हैं  फिर  ‘इंतज़ार’  किसलिए  ?

‘उठो’ , ‘कर्मठ’  बनों, ‘बदकिस्मती’ को  काफूर  कर  डालो |

[9]

जरा  सोचो 

‘जख्मों’  को  गिनते  रहोगे  तो ‘ जिंदगी ‘ को  ‘ढूंढते’  रह  जाओगे ,

‘आज  कैसे  जीना  है ‘ इसकी  ‘तलाश’  रख,’कल का हिसाब’  भूल  जा |

[10]

जरा  सोचो 

कुछ  चला- फिर  रुका, ‘सोचा’ – शायद  वो ‘ साथ’  चल  देंगे ,

हुआ  ऐसा  नहीं, ‘अकेला’  ही  बढ़ा, अब ‘जमाना’  साथ  है  मेरे  |

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