[1]
‘जब भी बेतकल्लुफ़ी से मिले उनसे’ ,’आनंद से भरपूर रहे ,’
‘जब भी मिलने से पहले सोचना पड़ा’ ,’सिमट कर रह गए ‘|
[2]
‘तुम सभी की जुबान पर मिठास बन कर उभरते रहो सदा’,
‘कड़वा घूंट तो रोज़ पीते हो’, ‘जीने का सलीका भी सीख लो ‘|
[3]
कृष्ण अष्टमी के शुभ अवसर पर —
[a]
जो कान्हा का बन कर रह गया , बेड़ा पार हो गया उसका ,’
हम भी उसे अपना बना लें , तो कल्याण ही कल्याण है सबका ‘|
[b]
‘कान्हा तू खुद मेरी आँखों मे समाया रहता है ‘,
‘और कहाँ ढूँढूँ तेरी ताबीर को कृष्ण ,तू ही बता ‘|
[4]
जन्माष्टमी के उपलक्ष में —
‘राधा-कृष्ण का प्यार मुबारक हो सबको ‘,
‘जन्माष्टमी का त्योहार मुबारक हो सबको’ ,
तू ‘ संतुष्टि ‘ का आज से दामन पकड़ ले ‘
‘ ताजन्म कान्हा प्यार से सरोबर रक्खेगा ‘|
[5]
जन्माष्टमी के अवसर पर —
[a ]
‘ हे प्रभु ! प्रेम की डोर कभी नहीं टूटे’ ,
‘सदा – उत्तम भावना बनी रहे हमारी’ ,
‘लालसा और खुदगर्जी का कोई भी लेप’ ,
न चढ़ने पाये हम पर कभी, मेरे कान्हा’ !
[b ]
‘हम जहां भी रहें , मिठास ही मिठास हो ,
‘महक ही महक हो संसार में चारों तरफ’,
‘हर इंसान – बस प्रेम की गंगा बहाता चले’
‘सुख का बिरवा सींचता चले जमाने में ‘|
[6]
“जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर ” —
‘कर्म ही इबाबत है ‘,कर्म ही प्यार है, और कर्म ही सफलता का राज है ,’
‘कर्म किए जाओ ,’फल की इच्छा मत करो , यही शाश्वत सत्य है ,’
‘इस संदेश को देने वाले कर्मयोगी भगवान श्री कृष्ण ही थे ‘,
‘हालात कैसे भी हों ,हमें हर सूरत में अपने कर्म करते रहना चाहिए |
[7]
‘सांसरिक वस्तुओं को मक्खन का पीड़ा समझ कर रोज़ खाते हो ,’
‘ये चूने के गोले हैं’,’अंतड़ियाँ कट जाएंगी’, ‘राम-नाम ‘ की हाला पी ‘|
[8]
“तेरा मुस्कराता चेहरा देखने को हर प्राणी आतुर है “,
‘झलक भी नहीं दिखाते हो और,अपना बना लेते हो सबको ‘|
[9]
जय श्री कृष्ण —-
‘ जब भी हम कान्हा को दिल से याद करते हैं,’
‘बिना मांगे वो अपनी रहमतों के द्वार खोल देता है “|