‘छमा से’ ‘ हमारे संस्कार पलते हैं ‘, हमारा अहंकार ‘ ढलता है ‘,
‘छमा ‘ शीलवान का शास्त्र ‘ और ‘ अहिंसक ‘ का मोघ- अस्त्र है ,
‘छमा’-‘धर्म है’, ‘छमा ‘-यज्ञ है ‘,’छमा ‘-‘ वेद है ‘ और ‘छमा’ – ‘शास्त्र है ‘,
‘अहं से ऊपर उठ कर’ ‘छमा तो ‘ – ‘सहनशील प्राणी ही कर पाएगा’ |