[1]
जरा सोचो
‘दम’ निकलने पर आओगे, यह कौन सा ‘उसूल’ है यारब?
मेरी जिंदगी का ‘सवाल’ शायद, तुम्हारी ‘जुबां’ से फिसल गया !
[2]
जरा सोचो
किसी को ‘सम्मान’ देना, ‘व्यक्तित्व’ प्रदर्शित करता है,
‘प्रत्युत्तर’ में ‘प्रचुर सम्मान’ मिलते देखा है हमने !
[3]
जरा सोचो
चाहे जिसे ‘धोखा’ दे दो , वापसी मिलना ‘ सुनिश्चित ‘ है,
तुमने ‘उसे’ दिया, कोई और ‘तुम्हें’ दे देगा, ‘चिट्ठा’ बराबर है !
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जरा सोचो
फल लगी ‘टहनी झुकी’ देख, ‘कुछ मिलते ही’ ‘नम्र’ होने लगा हूं मैं,
‘उपलब्धियों’ पर इतराता नहीं, ‘सभी के काम’ आने की कोशिश में हूं !
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जरा सोचो
शायद ‘ तबाह ‘ होने के लिए ‘ ईश्क ‘ किया था हमने,
उनकी ‘नजरअंदाजी’ खत्म नहीं होती, ‘हम’ पीछे नहीं हटते !
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जरा सोचो
सत्ता, संपत्ति, और समय, ‘परिवर्तनशील’ हैं, बिना बताए ‘बदल’ जाते हैं,
फिर इनका ‘ गुलाम ‘ किसलिए बनना, सिर्फ ‘प्रयत्नशील’ प्राणी बनो |
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जरा सोचो
‘रोना’ – पैदा होते ही ‘शुरु’ कर दिया , ‘ हंसना ‘ कब सीखोगे ?’
‘सांसो का हिसाब’ पक्का है, हर पल की ‘कीमत’ समझ कर ‘जी’!
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