Home ज़रा सोचो ‘चन्दन सरीखा बनो , सभी का दिल जीतते रहो – इसी का नाम जीवन है |

‘चन्दन सरीखा बनो , सभी का दिल जीतते रहो – इसी का नाम जीवन है |

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जरा सोचो
‘सामने  वाला ‘गलत’ नहीं, सिर्फ  इस  ‘बदलाव’  की  जरूरत  है,
‘वह ‘नई  सोच’ रखता  है, यह  बात  ‘रिश्ते’ बिखरने  नहीं  देगी’ !

[2]

जरा सोचो
एक- जब ‘किस्मत’ लिखी  हुई  है, फिर  ‘ ‘कोशिश’  किसलिए  करना ?
दूसरा – क्या  पता ”कोशिश’ करने  में  ही ‘ किस्मत  का द्वार’ खुलता हो’ !
[3]
जरा सोचो
‘स्नेह , रिश्ते ,  दोस्ती , हर  जगह  मिल  जाएंगे,
‘ वह ‘ठहरते’ वहीं  पर  है ,’जहां ‘सम्मान’ मिलता हो’ !
[4]
जरा सोचो
‘आपसे  ‘दोस्ती’  की  है, ‘दिल  का  दरवाजा’  खोल  कर  रखना,
‘स्नेह  की  बूंदें’ जरूर टपकेगी, ‘संभाल’ कर रखने  की जरूरत  है’ !
[5]
जरा सोचो
‘किसी  की  बात’ इतना ‘दर्द’ नहीं  देती, जितना  ‘लहजा’  दे  जाता  है,
‘ खुदा  करे  हर  किसी  की ‘बात  का  लहजा’ सब  में ‘प्यार’ भर  जाए’ !
[6]
जरा सोचो
‘कौन  क्या  कहता  है ?  कुछ  विचारने  की ज रूरत  नहीं,
‘हर  बदलाव’ का ‘स्वागत’ करो, खुश  रहो , बस खुश  रहो’ !
[7]
जरा सोचो
‘ तू ‘चंदन’  सरीखा  बन, जितने  भी  रगड़ेंगे , खुशबू  महकेगी,
‘बेरौनक’  तो  दुनिया  जीती  है,  पर  किसी  ‘काम’  की  नहीं’ !
[8]
जरा सोचो
‘बीते  समय’ से  सीखिए, ‘वर्तमान’  प्रभु  का  प्रसाद  समझ  कर  जीये,’
‘भविष्य’  आपको  गतिमान  बनाए  रखता  है , ‘ यही  तो  जीवन  है’
[9]
जरा सोचो
‘ मैं-‘ अच्छा  या  बुरा’ आपके  सामने  हूं ,  चाहे  जैसे  ‘ नवाजिऐ ‘,
‘आपके एहसास’ का अक्स ही होगा,’ जो मिला ‘शुक्रिया’ है आपका’ !
[10]
गजब  का  मिजाज  है  आपका , हमें  बेहोश  करके  भी  मुस्कराते  हो ,
‘ कभी  सामने  आते  नहीं ,  बस  छिप – छिप  कर  वार  करते  हो |
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