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“गौ माता ” के ” संबंध में महत्वपूर्ण जानकारी “

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गौमाता से सम्बन्धित कुछ महत्वपूर्ण जानकारी जरूर ध्यान से पढ़े और प्रतिक्रिया दें – भारत बचाओ आंदोलन

गौ एवं गौ विज्ञान से जुड़े प्रश्नोत्तर एवं आयुर्वेदिक दृष्टी से गौमाता का महत्व

प्रश्नोत्तर

गौ   एवं   गौ   विज्ञान   से   जुड़े   अक्सर   पूछे   जाने   वाले   कुछ   प्रश्नोत्तर   यहाँ दिये   गए   है  | अगर   आपके   मन   में   इन   प्रश्नों   के   अलावा   भी   कोई   प्रश्न आए   तो   आप   इस   पेज   पर   कमेंट   के   रूप   में   हम   से   पूछ   सकते   है  | आपके   द्वारा   पूछे   गए   अच्छे   प्रश्नों   को   हम   यहाँ   जोड़   कर   सभी   के   लिए उसका   उत्तर   उपलब्ध   करवाएँगे  |

प्रश्न 1.) गौ  क्या   है  ?

उत्तर 1.)  गौब्रह्मांड   के   संचालक   सूर्य   नारायण   की   सीधी   प्रतिनिधि   है  | इसका   अवतरण   पृथ्वी   पर   इसलिए   हुआ   है   ताकि   पृथ्वी   की   प्रकृति        का   संतुलन   बना   रहे  |   पृथ्वी   पर   जितनी   भी   योनियाँ   है   सबका   पालन-पोषण   होता   रहे  |   इसे   विस्तृत   में   समझने   के   लिए   ऋगवेद   के   28वें अध्याय   को   पढ़ा   जा   सकता   है  |

प्रश्न 2.)  गौमाता   और   विदेशी   गौ   में   अंतर   कैसे  पहचाने  ?

उत्तर 2.)  गौ  माता एवं   विदेशी   गौ   में   अंतर   पहचानना   बहुत   ही   सरल   है  | सबसे   पहला   अंतर   होता   है   गौ  माता   का   कंधा   (  अर्थात   गौ  माता   की   पीठ   पर   ऊपर   की   और   उठा   हुआ   कुबड़   जिसमें   सूर्यकेतु   नाड़ी   होती  है ), विदेशी   गाय   में   यह   नहीं   होता   है   एवं   उसकी   पीठ   सपाट   होती   है  | दूसरा अंतर   होता   है   गौ  माता   के   गले   के   नीचे   की   त्वचा   जो   बहुत   ही   झूलती हुई   होती   है   जबकि   विदेशी   काऊ   के    गले   के   नीचे   की   त्वचा   झूलती   हुई ना   हो  कर   सामान्य   एवं   कसीली   होती   है  |   तीसरा   अंतर   होता   है   गौ माता   के   सिंग   जो   कि   सामान्य   से   ले  कर   काफी   बड़े   आकार   के   होते   है जबकि   विदेशी   काऊ   के   सिंग   होते   ही   नहीं   है   या   फिर   बहुत   छोटे   होते है  | चौथा  अंतर   होता   है   गौ  माता   कि   त्वचा   का   अर्थात   गौ  माता   कि त्वचा   फैली   हुई  ,   ढीली   एवं   अति  संवेदनशील   होती   है   जबकि   विदेशी   काऊ   की   त्वचा   काफी   संकुचित   एवं   कम   संवेदनशील   होती   है  |

प्रश्न 3.)   अगर   थोड़ा   सा   भी   दही   नहीं   हो   तब   दूध   से   दही   कैसे  बनाएँ ?

उत्तर 3.)   हल्के   गुन-गुने   दूध   में   नींबू   निचोड़   कर   दही   जमाया   जा   सकता है  |   इमली   डाल   कर   भी   दही   जमाया   जाता   है  |   गुड़   की   सहायता   से   भी   दही   जमाया   जाता   है  |   शुद्ध   चाँदी   के   सिक्के   को   गुन-गुने   दूध  में डाल  कर   भी   दही   जमाया   जा   सकता   है  |

प्रश्न 4.)   किस   समय   पर   दूध   से   दही   बनाने   की   प्रक्रिया   शुरू   करें  ?

उत्तर 4.)  रात्री   में   दूध   को   दही   बनने   के   लिए   रखना   सर्वश्रेष्ठ   होता   है ताकि   दही   एवं   उससे   बना   मट्ठा    एवं   छाछ   सुबह   सही   समय     पर   मिल   सके  |

प्रश्न 5.)  गौ  मूत्र   किस   समय   पर   लें  ?

उत्तर 5.)  गौ  मूत्र   लेने   का   श्रेष्ठ   समय   प्रातःकाल   का   होता   है   और   इसे    पेट   साफ   करने   के   बाद   खाली   पेट   लेना   चाहिए  |   गौ  मूत्र   सेवन   के         1 घंटे   पश्चात   ही   भोजन   करना   चाहिए  |

प्रश्न 6.)   गौ  मूत्र   किस   समय   नहीं   लें  ?

उत्तर 6.)   मांसाहारी   व्यक्ति   को   गौ  मूत्र   नहीं   लेना   चाहिए  |   गौ  मूत्र   लेने   के   15   दिन   पहले   मांसाहार   का   त्याग   कर   देना   चाहिए  |   पित्त   प्रकृति वाले   व्यक्ति   को   सीधे   गौ  मूत्र   नहीं   लेना   चाहिए  ,   गौमूत्र   को   पानी   में मिला  कर   लेना   चाहिए  |   पीलिया   के   रोगी   को   गौ  मूत्र   नहीं   लेना   चाहिए |   देर   रात्रि   में   गौ  मूत्र   नहीं   लेना   चाहिए  |   ग्रीष्म   ऋतु   में   गौ  मूत्र   कम मात्र   में   लेना   चाहिए  |

प्रश्न 7.)   क्या   गौ  मूत्र   पानी   के   साथ   लें  ?

उत्तर 7.)   अगर   शरीर   में   पित्त   बढ़ा   हुआ   है   तो   गौ  मूत्र   पानी   के   साथ     लें   अथवा   बिना   पानी   के   लें  |

प्रश्न 8.)  अन्य   पदार्थों   के   साथ   मिलकर   गौ  मूत्र   की   क्या   विशेषता   है  ? (जैसे   की   गुड़   और   गौ  मूत्र   आदि   संयोग  )

उत्तर 8.)   गौ  मूत्र   किसी   भी   प्रकृतिक   औषधी   के   साथ   मिलकर   उसके    गुण-धर्म   को   बीस   गुणा   बढ़ा   देता   है  |   गौ  मूत्र   का   कई   खाद्य   पदार्थों     के   साथ   अच्छा   संबंध   है   जैसे   गौ  मूत्र   के   साथ   गुड़  ,  गौ  मूत्र   शहद  के साथ   आदि  |

उत्तर 9.)   अमावस्या   एवं   एकादशी   तिथि   तथा   सूर्य   एवं   चन्द्र ग्रहण   वाले   दिन   गौ  मूत्र   का   सेवन   एवं   एकत्रीकरण   दोनों   वर्जित है|

प्रश्न 10.)   वैज्ञानिक   दृष्टि   से   गाय   की   परिक्रमा   करने   पर   मानव शरीर   एवं   मस्तिष्क   पर   क्या   प्रभाव   एवं   लाभ   है  ?

उत्तर 10.)   सृष्टि   के   निर्माण   में   जो   32   मूल   तत्व   घटक   के   रूप में   है   वे   सारे   के   सारे   गाय   के   शरीर   में   विध्यमान   है  |   अतः गाय   की   परिक्रमा   करना   अर्थात   पूरी   पृथ्वी   की   परिक्रमा   करना है  |   गाय   जो   श्वास   छोड़ती   है   वह   वायु   एंटी-वाइरस   है  | गाय द्वारा   छोड़ी   गयी   श्वास   से   सभी   अदृश्य   एवं   हानिकारक   बैक्टेरिया मर   जाते   है  |   गाय   के   शरीर   से   सतत   एक   दैवीय   ऊर्जा निकलती   रहती   है   जो   मनुष्य   शरीर   के   लिए   बहुत   लाभकारी   है | यही   कारण   है   कि   गाय   की   परिक्रमा   करने   को   अति   शुभ   माना गया   है  |

प्रश्न 11.)   गाय   के   कूबड़   की   क्या   विशेषता   है  ?

त्तर 11.)   गाय   के   कूबड़   में   ब्रह्मा   का   निवास   है  |   ब्रह्मा   अर्थात सृष्टि   के   निर्माता  |   कूबड़   हमारी   आकाश   गंगा   से   उन   सभी ऊर्जाओं   को   ग्रहण   करती   है   जिनसे   इस   सृष्टि   का   निर्माण   हुआ है  |   और   इस   ऊर्जा   को   अपने   पेट   में   संग्रहीत   भोजन   के   साथ मिलाकर   भोजन   को   ऊर्जावान   कर   देती   है  |   उसी   भोजन   का पचा   हुआ   अंश   जिससे   गोबर  ,   गौ  मूत्र   और   दूध   गव्य   के   रूप में   बाहर   निकलता   है   वह   अमृत   होता   है  |

प्रश्न 12.)   गौ  माता   के   खाने   के   लिए   क्या-क्या   सही   भोजन   है  ? (सूची)

उत्तर 12.)   हरी   घास  ,  अनाज   के    पौधे   के   सूखे   तने  ,  सप्ताह   में कम   से   कम   एक   बार   100   ग्राम   देसी   गुड़   ,  सप्ताह   में   कम  से कम   एक   बार   50  ग्राम   सेंधा   या   काला   नमक  ,   दाल   के   छिलके  ,   कुछ   पेड़   के   पत्ते   जो   गाय   स्वयं   जानती   है   की   उसके   खाने   के   लिए   सही   है  ,   गाय   को   गुड़   एवं   रोटी   अत्यंत   प्रिय   है  |

प्रश्न 13.)   गौ   माता   को   खाने   में   क्या-क्या   नहीं   देना   है   जिससे गौ  माता   को   बीमारी   ना   हो  ? (सूची)

उत्तर 13.)   देसी   गाय   जहरीले   पौधे   स्वयं   नहीं   खाती   है  |   गाय  को बासी   एवं   जूठा   भोजन  ,   सड़े   हुए   फल   नहीं   देना   चाहिए  |   गाय को   रात्रि   में   चारा   या   अन्य   भोजन   नहीं   देना   चाहिए  |  गाय   को साबुत   अनाज   नहीं   देना   चाहिए   हमेशा   अनाज   का   दलिया   करके ही   देना   चाहिए  |

प्रश्न 14.)  गौ  माता   की   पूजा   करने   की   विधि  ?  ( कुछ  लोग   बोलते है   कि   गाय   के   मुख   कि   नहीं    अपितु   गाय   कि   पूंछ   कि   पूजा करनी   चाहिए   और   अनेक   भ्रांतियाँ   है  |)

उत्तर 14. ) गौ  माता   की   पूजा   करने   की   विधि   सभी   जगह  भिन्न-भिन्न   है   और   इसके   बारे   में   कहीं   भी   आसानी   से   जाना   जा सकता   है  |   लक्ष्मी, धन , वैभव  आदि   कि   प्राप्ति   के   लिए   गाय  के शरीर   के   उस   भाग   कि   पूजा   की   जाती   है   जहां   से   गोबर   एवं गौ  मूत्र   प्राप्त   होता   है  |   क्योंकि   वेदों   में   कहा   गया   है   की             “ गोमय  वसते  लक्ष्मी”  अर्थात   गोबर   में   लक्ष्मी   का   वास   है   और “ गौ  मूत्र   धन्वन्तरी ”  अर्थात   गौ  मूत्र   में   भगवान   धन्वन्तरी   का निवास   है  |

प्रश्न 15.)   क्या   गाय   पालने   वालों   को   रात   में   गाय   को   कुछ  खाने देना   चाहिए   या   नहीं  ?

उत्तर 15.)   नहीं  ,   गाय   दिन   में   ही   अपनी   आवश्यकता   के   अनुरूप भोजन   कर   लेती   है  |   रात्रि   में   उसे   भोजन   देना   स्वास्थ्य   के अनुसार   ठीक   नहीं   है  |

प्रश्न 16.)   दूध   से   दही  ,  घी ,  छाछ   एवं   अन्य   पदार्थ   बनाने   के आयुर्वेद   अनुसार   प्रक्रियाएं   विस्तार   से   बताईए  |

उत्तर 16.)   सर्वप्रथमड   दूध   को   छान   लेना   चाहिए  ,   इसके   बाद   दूध   को   मिट्टी   की   हांडी  ,   लोहे   के   बर्तन   या   स्टील   के   बर्तन   (  ध्यान   रखे   की   दूध   को   कभी   भी   तांबे   या   बिना   कलाई   वाले पीतल   के   बर्तन   में   गरम   नहीं   करें  )   में   धीमी   आंच   पर   गरम करना   चाहिए  |   धीमी   आंच   गोबर   के   कंडे   का   हो   तो   बहुत   ही अच्छा   है  |   पाँच-छः   घंटे   तक   दूध   गरम   होने   के   बाद   गुन-गुना रहने   पर   1  से  2   प्रतिशत   छाछ   या   दही   मिला   देना   चाहिए  |  दूध   से   दही   जम   जाने   के   बाद   सूर्योदय   के   पहले   दही   को   मथ देना   चाहिए  |    दही   मथने   के   बाद   उसमें   स्वतः   मक्खन   ऊपर  आ   जाता   है  |   इस   मक्खन   को   निकाल   कर   धीमी   आंच   पर पकाने   से   शुद्ध   घी   बनता   है  |   बचे   हुए   मक्खन  रहित   दही  में बिना   पानी   मिलाये   मथने   पर   मट्ठा   बनता   है  |   चार   गुना  पानी मिलने   पर   तक्र  बनता   है   और   दो   गुना   पानी   मिलने   पर   छाछ बनता   है  |

प्रश्न 17.)   दूध   के   गुण  धर्म  ,   औषधीय   उपयोग  |  किन-किन  चीजों में   दूध   वर्जित   है  ?

उत्तर 17.)  गाय   का   दूध   प्राणप्रद  ,   रक्त पित्त नाशक ,  पौष्टिक  और रसायन   है  |   उनमें   भी   काली   गाय   का   दूध   त्रिदोषनाशक, परम  शक्तिवर्धक   और   सर्वोत्तम  होता   है  |   गाय   अन्य   पशुओं   की  अपेक्षा सत्वगुणयुक्त   है   और   दैवी-शक्ति   का  केंद्र  स्थान  है  |  दैवी-शक्ति   के योग   से   गो  दुग्ध   में   सात्विक   बल   होता   है  |   शरीर   आदि   की पुष्टि   के   साथ   भोजन   का   पाचन   भी   विधिवत   अर्थात   सही   तरीके से   हो   जाता   है  |   यह   कभी   रोग   नहीं   उत्पन्न   होने   देता   है  | आयुर्वेद   में   विभिन्न   रंग  वाली  गायों   के   दूध   आदि   का   पृथक-पृथक   गुण  बताया   गया   है  |   गाय   के   दूध   को   सर्वथा   छान   कर ही   पीना   चाहिए  ,   क्योंकि   गाय   के   स्तन   से   दूध   निकालते   समय   स्तनों   पर   रोम   होने   के   कारण   दुहने   में   घर्षण   से   प्रायः रोम   टूट   कर   दूध   में   गिर   जाते   हैं  |   गाय   के   रोम   के   पेट   में जाने   पर   बड़ा   पाप   होता   है  |   आयुर्वेद   के   अनुसार   किसी   भी  पशु का   बाल    पेट   में   चले   जाने   से   हानि   ही   होती   है  |   गाय   के   रोम से   तो   राजयक्ष्मा   आदि   रोग   भी   संभव   हो   सकते   हैं   इसलिए   गाय   का   दूध   छान  कर   ही   पीना   चाहिए  |   वास्तव   में दूध   इस   मृत्यु  लोक   का   अमृत   ही   है  |

अमृतं  क्षीर भोजनम् ”

प्रश्न 18)  श्रीखंड   के   गुण  धर्म  ,   औषधीय  उपयोग  |  किन-किन  चीजों में   श्री खंड  वर्जित   है ?

उत्तर 18)  श्रीखंड   में   मुख्य  रूप   से   जल  रहित   दही  ,   जायफल   एवं देसी   मिश्री   होते   है  |   जायफल   कुपित   हुए   कफ   को   संतुलित करता   है   एवं   मस्तिष्क   को   शीत   एवं   ताप   दोनों   से   बचाता   है | चूंकि   श्रीखंड   में   जायफल   के   साथ   जल  रहित   दही   की   घुटाई   होती   है   इसलिए   इस   प्रक्रिया   में   जायफल   का   गुण   20  गुना   बढ़ जाता   है  |   इस   कारण   श्रीखंड   मेघा  शक्ति   को   बढ़ाता   है  , कफ  को संतुलित   रखता   है   एवं   मस्तिष्क   को   शीत   एवं   ताप   दोनों   से बचाता   है  |  अत्यधिक   शीत   ऋतु  ,   अत्यधित   वर्षा   ऋतु   में   श्रीखंड   का   सेवन   वर्जित   माना   गया   है  |  ग्रीष्म   ऋतु   में   श्रीखंड का   सेवन   मस्तिष्क   के   लिए   अमृत तुल्य  है  |  श्रीखंड   निर्माण  के बाद   6 घंटे   के   अंदर   सेवन   कर   लिया   जाना   चाहिए  |   फ्रीज़   में रखे   श्रीखंड   का   सेवन   करने   से    उसके   गुण-धर्म   बदल   कर   हानी उत्पन्न   कर   सकते   है   अर्थात   इसे   सामान्य   तापमान   पर   रख  कर ताज़ा   ही   सेवन   करें  |

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