Home कविताएं “गंभीर चिंतन व गहराई में उतरने की जरूरत है ” !

“गंभीर चिंतन व गहराई में उतरने की जरूरत है ” !

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[1]

‘हम  अब  भी  नहीं  संभले  तो’ 
‘अतीत  बन  कर  रह  जाएंगे’,
‘अरे  मानव ! हर  पल  की  कदर  कर’ ,
‘गया  सांस  लौट  कर  नहीं  आता ‘|

[2]

‘सभी  से -विचार  मग्न  गंभीर  चिंतन  व  गहराई  में  उतरने  का   अनुरोध  है’,
‘विचार  ही  जीवन  को  बनाने  अथवा   बिगाड़ने   का  आधार   होता   है ‘|

[3]

‘जन्म  और  मृत्यु  के  बीच  का  समय  कुछ  ऐसा  बिताओ ‘,
‘यश  के  पात्र  बन  जाओ ,’परलोक  भी  सुनहरा  बन  जाए ‘ |

[4]

‘जिन्हें  हम  अपना  समझते  थे’ ,
‘दर्द  पर  दर्द  देते  चले  गए ‘,
‘जिन्होने  हमें  अपना  समझा’ ,
‘वो  हमारा  हर  आँसू  पी  गए ‘|

[5]

‘हम  तो  निश्चल  प्रेम  के  पुजारी  हैं’ ,
‘हमें  सता  कर  क्या  पा  जाओगे’,
‘तुम्हारी  करनी  तुम्हारे  साथ’ ,
‘हमारी  आस्था  ओर  गहराती  जाएगी ‘|

[6]

‘आनंद  के  शिखरों  की  ओर  जाने  की  उत्सुकता  उत्पन्न  करो ‘,
‘दुर्गंधपूर्ण  विचार  सदा  जीवन  में  सड़ांध  उत्पन्न  करते  हैं ‘|

[7]

‘चाहे  जितना  बड़ा  बन  जाओ , बिना  गुणी  बनें  ऊपर  नहीं  उठ  सकते ‘,
‘आलसी  आदमी  का  वर्तमान  और  भविष्य  कभी  होता  ही  नहीं ‘|

[8]

‘जब  अक्षम  हो  फिर  प्रयास  क्यों  नहीं  करते  ,’ इंतज़ार  किसका  है ‘?
‘बिना हाथ हिलाये  मुंह में निवाला  नहीं जाता ,यह  निर्वादित  सत्य  है ‘|

[9]

‘जो  दौलत  हेतु  कुछ  भी  कर  सकते  हैं’ ,
‘जरा  बच  कर  चलें  उनसे’,
‘वो  बेपेंदे  के  लौटे  हैं  ,  रुपये  के  लिए’, 
‘तुम्हारा  भी  कत्ल  कर  देंगे ‘|

[10]

‘उसने  पहले  बेरुखी  दिखाई  , हंसा ,फिर  लड़  पड़ा , मैं  शांत  बना  रहा ‘,
‘थक  कर  वो  हार  गया , मैं  मुस्करा  कर  आगे   बढ़ता   चला  गया ‘|

[11]

‘हम  बच्चों  पर  रोब  गांठ  कर  उनकी ‘सोचने  की  ताकत  को  अपंग  बनाते  हैं ‘,
‘स्पर्धा  करने  दो ,व्यक्तित्व  उभरने  दो’ ,’मार्ग-दर्शक  बने  रहना  ही  उत्तम  है ‘|

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