[1]
जरा सोचो
वह ‘खूबसूरती’ से ‘मुस्कुरा’ कर हर ‘गम’ भुलाते चले गए,
हमने देखा, हर ‘मुसाफिर’ ‘मेहरबान’ था उस पर ‘ !
[2]
जरा सोचो
‘ खूबियां’ हों या ‘खामियां’, आदमी ‘सरोवर’ रहता है उनसे ,
‘तलाश’ करोगे तो ‘खामियां’, ‘तराशोगे’ तो ‘खूबियां’ !
[3]
जरा सोचो
‘ तबाही’ के ‘मंजर’ खूब देखे , खूब ‘खुशियां’ कुर्बान की ,
तभी ‘उदास लम्हों’ में भी ‘मुस्कुराने’ का ‘हुनर’ सीख पाये हैं !
[4]
‘वफा’ की तलाश में ‘जीवन’ गँवा दिया , ‘बेवफ़ाई’ हाथ में आई ,
पता चला- जिस ‘हवा’ में ‘सांस’ लेते थे , ‘जहर’ से लबालब थी |
[5]
‘ आत्मविश्वास ‘ की नाव पर सवार , मुसीबत की नदी में नहीं गिरते ,
‘धीरज’ नहीं छोड़ते , ‘हर पल’ का ‘आनंद’ लेने में कभी नहीं ‘हिचकते ‘ |
[6]
‘किसी पर मत ‘ हंसो ‘, सब मिल कर ‘हंसो’ , ‘आनंद’ लो,
‘रोंगटों’ की ‘ रवानी’, ‘उदासी ‘ को ‘कोसों दूर ‘ ले जाएगी ‘|
[7]
जरा सोचो
आप वो ‘ख्वाब’ हो जिसकी हमें हकीकत में ‘जरूरत’ है,
यूं मिलते तो ‘बहुत’ हैं पर ‘तुम’ निश्चित ही ‘लाजवाब’ हो !
[8]
‘आप तो ख्वाब हो जिसकी हमें हकीकत में जरूरत है ,
यूं मिलते तो बहुत हैं , पर आप निश्चित ही लाजबाब हो ‘
[9]
‘ जमाना बड़ा जालिम है , बिना पुस्तक सब कुछ सीखा देगा ,
‘कहाँ बचना है , कहाँ प्रहार करना है , सम्मान से कैसे जिया जाए ‘ |
[10]
‘जिन ‘ विचारों और कर्मों’ से ‘ दर्द’ उत्पन्न होता है ,
‘वह ‘सत्कर्म नहीं होता , ‘पीछे’ हटने में ही भलाई है |