[1]
जरा सोचो
‘ बेकरारी’ का आलम जरूर है , फिर भी ‘बरकरार’ हूं,
‘ दिल’ के किसी कोने में ‘तस्वीर’ छुपा रखी है ‘यार’ की !
[2]
जरा सोचो
‘ निगाहें’ मिला कर एक बार ‘मुस्कुरा’ तो दो,
‘दिल’ में ‘छुपा प्यार’ ‘कुर्बान’ कर देंगे तुम पर’ !
[3]
जरा सोचो
जब ‘रिश्तों’ में ‘अपनापन’ नजर नहीं आए, वह ‘रिश्ता’ किस काम का ?
इससे ‘ दुश्मन ‘ लाख बेहतर हैं , सरेआम ‘ धमकी ‘ तो देते हैं !
[4]
जरा सोचो
‘ साथ ‘ चलते रहे तो ‘ रास्ते ‘ सुगम होते जाएंगे ,
‘ दुर्घटना’ नहीं होगी, ‘सहयोग की भाषा’ भी समझ जाओगे’ !
[5]
जरा सोचो
सामान्य ‘हंसी-मजाक’ भी ‘चेहरे की सुंदरता’ चौगुनी कर देते हैं,
‘कर्कश और उदास’ चेहरा , किसी को ‘पसंद’ नहीं , बचते रहें !
[6]
‘मुस्किलों में अपनों को पहचानने से मुकरते खूब देखा है ,
‘अनजानों ने राह में जब नज़रें बिछाई, दिल में उतर गए सारे |
[7]
‘अगर खुशियाँ छलकती हैं ,’नज़र’ लगना स्वाभाविक है ,
‘बुरी नज़र वाले हर जगह मौजूद हैं, सरल स्वभाव में मनाइए खुशियाँ ‘ |
[8]
मेरी सोच
“मुझे अपने ‘दिल का गर्व’ है क्योंकि उसे अनेकों बार चुराया गया,
धोखा दिया गया , जलाया गया , तोड़ा गया , मरोड़ा गया , उससे खेला
गया , फिर भी वह ‘अपना कार्य’, ‘ समर्पण भाव’ से करता चला गया ” !
[9]
जरा सोचो
‘खुशी’ मांगने से नहीं, ‘सतत प्रयासों’ से हासिल होती है,
‘उत्तम बीज’ से ‘खेती’ करोगे, तो ‘हरियाली’ आनी सुनिश्चित है’ !
[10]
जरा सोचो
‘तोड़ना’ है तो ‘तोड़’ दो, ‘जोड़ने’ में ‘टांके’ खुल जाएंगे सारे,
‘स्नेह’ की परिधि से ‘अपरिचित’ रहना भी, ‘अपराध-बोध’ है !