[1]
‘हर बात में मुझे ‘ इस्तेमाल ‘ करते हो ‘ , ‘ अच्छे रिस्तेदार हो ‘, ‘ज्यादा दिल्लगी अच्छी नहीं होती ‘,’कभी तो ‘दिल की लगी’ जगाओ ‘|
[2]
जब हर पौधा औषधि बन जाए’ ,’हर विचार कसौटी पर खरा निकले’,
‘हर दृष्टि निर्मल हो ‘ ‘ सत्य का बोलबाला हो”वही संसार असली है ‘|
[3]
‘तू सच्चा है, दिलदार है ‘ तो,’दर्द सहने की आदत बना अपनी ‘,
‘दिलजले केवल भुस में आग लगाते हैं ,’बस हाथ सेंकते हैं ‘|
[4]
‘चाहे रिस्ते टूटें , चाहे ख्वाब या कोई काँच’,’चुभते जरू र हैं ‘,
‘इन्हें संभाल कर रखने का प्रयास’ ,’लहूलुहान होने से बचा लेगा ‘|
[5]
‘हमने अपना भाग्य खुद लिखा है ‘,’किसी का कसूर नहीं इसमें ‘,
‘मुंह उठा कर थूकेंगे तो खुद कैसे बच पाएंगे , ये तो बता ‘ ?
[6]
‘सूरज की तरह चमकने की इच्छा तो है’ ,
‘परंतु तपने का प्रयास नहीं ‘,
‘अनथक प्रयास करके तैरना सीखो ‘,
‘चमकने भी लग जाओगे ‘|
[7]
‘इंसान ‘खूबियों’ से भरा पड़ा है’ ,
‘परंतु ‘खामियाँ ‘ भी कम नहीं ‘,
‘आप किस पाले में पड़ते हो’ ,
‘सोच कर तुम्ही बताओ दोस्तों ‘?
[8]
‘अर्जुन’ और ‘दुर्योधन’ दोनों के एक ही ‘द्रोणाचार्य’ गुरु थे ‘,
‘एक ‘दुराचार’ में फंसा रहा,दूसरा ‘कर्मकार’ बन कर जिया ‘,
‘समझदारी ‘ का खेल था,’शतरंज’ की चाल चल नहीं पायी ‘,
‘अर्जुन’ आज भी याद है सबको,’दुर्योधन’ को भूल गए हैं ‘|
[9]
‘जिसका ‘जमीर’ मर गया’ ,
‘कुविचारों का सागर लहराएगा उसमें ‘,
‘अमीर’ तो कोई भी हो सकता है’ ,
‘जमीर’ का ‘अमीर’ बन कर दिखा ‘|
[10]
‘भक्त समझ कर मंदिर जाने वाले’,’हममें बहुत से भक्त हैं ही नहीं, ‘
‘मंदिर में जाने से भक्त हो जाते तो’,’धरती पर नरक नहीं दिखता ‘,
‘सत्संग’ में जाने वाले धार्मिक होते तो चारों तरफ आंसूँ क्यों मिलते ‘,
‘गम और चिंता’ की आग क्यों महसूस होती’,’असत्य का बोलबाला है ‘|