Home कविताएं ‘खयाल अपना अपना ‘ कुछ छंद !

‘खयाल अपना अपना ‘ कुछ छंद !

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[1]

‘सभी कहते हैं ‘न कुछ ले कर आए थे’ ,
‘न कुछ ले कर जाओगे ‘,
मेरा कहना है ‘भाग्य ले कर आए थे ‘,
‘कर्म ले कर जाओगे ‘|

[2]

‘आपसदारी” शहद सरीखी है “, ‘दौलत के तराजू में मत तोलना कभी’ ,
“यह कला की अभिव्यक्ति नहीं ‘, ‘ दिलों के अहसास का खजाना है ” |

[3]

‘अपनी नज़रें झुकाईये महरबान’ ,
‘मुझ पर नशा सा चढ़ने लगा है’, 
‘हर किस्म का नशा हराम है’ ,
‘हमारे मजहब ये ही सिखाते हैं ‘

[4]

‘खुद के गुनाहों पर पर्दा डाल कर ‘,
‘हम ‘जमाना खराब’कहते हैं ‘,
‘नकाब बदलने में माहिर हैं ‘,
‘वक्त का अंदाज़ भांप लेते हैं ‘|

[5]

‘देखिये जनाब ! इज्जत इंसान की नहीं ,
‘जरूरत की होती है ‘,
‘जरूरत पर अनेकों बार ‘गधे को बाप’,
‘कहते देखा है हमने ‘|

[6]

‘प्यार का घर बनाते बनाते’ ,
‘उम्र पक गयी अपनी ‘,
‘बहारों की इज्जत बचाने में हम’ ,
‘बाकायदा कुर्बान होते चले गए ‘|

[7]

‘जिन्दगी हकीकत में बेहद साधारण 
और लचीली है ‘,
‘वो हम ही हैं जो उसे ‘उलझनों के 
मोतियों से भरते हैं ‘|

[8]

‘हमारी उम्मीदें हमें थकने नहीं देती’,
‘लगाम खींचे रखती हैं ‘,
‘अनेकों प्रयास कर डाले हमने’ ,
‘उनसे पीछा छुड़ाने के ‘|

[9]

‘मरते के साथ कोई नहीं मरता’,
‘वक्त सभी को जीना सीखा देता है ‘,
‘कर्म करना हमारा फर्ज़ है ‘,
सदा खुश रहने का प्रयास जारी रख ‘|

[10]

‘लोग हमारे बारे में क्या सोचते हैं’ ,
‘यह सोच मार डालेगी तुझे ‘,
‘सकूँ से जीने का फलसफा’ ,
‘सुमधुर बनाए रक्खेगा तुझे ‘|

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