[1]
‘क्रोध’ ‘पाप का मूल’ है ,’ क्रोधी व्यक्ति ‘ अनुचित कदम उठाता है,
‘चाहे किसी को जला़ दो, मार डालो, इज्जत उतारो, ‘क्रोध’ का आवेश है,
‘क्रोध’ ‘शांति तोड़ देता है ‘अज्ञान का भंडार है’, दूरभाषी बनाता है,
‘क्षणिक आवेश है, ‘अंत दुखदाई’, पीछे ‘पछताने’ से कुछ नहीं होगा’ !
[2]
‘ जब भी खोजो ,’ खुद को खोजो , ‘ मनचाहे सवालों से , घिरा है मन तेरा,
‘अतृप्त तृष्णा’ को मिटा अपनी’, ‘अंतरात्मा को जगा, उसका ‘सहारा’ ले केवल’ !
‘अतृप्त तृष्णा’ को मिटा अपनी’, ‘अंतरात्मा को जगा, उसका ‘सहारा’ ले केवल’ !
[3]
‘मन की ‘अशांति’ को मिटा, दिल में ‘शांति कुंज’ बसा,
‘ प्यार का ‘ भंडारा ‘ खोल ‘, ‘अंधी दौड़’ की राह से बच,
‘मेहनत की राह पकड़, हर किसी की सलामती की दुआ कर,
‘सबसे-‘ सुखी रहने का आशीर्वाद ले’, ‘गलत सोच’ को बदल ‘!
[4]
” खुद की पहचान समाज में स्थापित करो !
‘अपने आपको देखना तथा उसे पहचानना ही ‘ ध्यान ‘ है ,
‘दूसरों की कमियां निकालना, ‘आत्महत्या’ से कम नहीं यारों,
‘अगर तुम ‘संभल’ गए तो समझ लो,समाज ‘उन्नति पथ’ पर है,
‘ सभी ‘ कुरीतियां ‘ ‘असमानताएं ‘, स्वयं ही विलुप्त होती जाएंगी,
[5]
‘आप जो चाहते हैं नहीं मिलता तो, मन में नकारात्मक विचार आते हैं,
‘ मुसीबत का सामना करना सीखो , धरातल पर ही जिओ ,
‘जो नहीं मिला’ उसके लिए खुद को भला बुरा कहना, समझदारी नहीं,
‘क्रोध’ में ‘ स्वार्थी निर्णय ‘ न लेंं, खुद को’ ‘प्यार से संभालना’ सीखो ‘ !
[6]
‘संस्कारी व्यक्ति’,’ दूसरों की सेवा’ में कभी पीछे नहीं हटता,
‘तू भी ऐसा ‘कर्मकार’ बन,’हर बुरी व्यवस्था पर भारी पड़े’ !
‘तू भी ऐसा ‘कर्मकार’ बन,’हर बुरी व्यवस्था पर भारी पड़े’ !
[7]
‘पूरा प्रयास करता हूं ,
‘सब कुछ ‘भूलता’ जाऊं,
‘तुम्हारा ख्याल’ आते ही ,
‘सब कुछ भूल जाता हूं’ !
‘सब कुछ ‘भूलता’ जाऊं,
‘तुम्हारा ख्याल’ आते ही ,
‘सब कुछ भूल जाता हूं’ !
[8]
‘मैं आजकल ‘उलझनों ‘ से गुजरता जा रहा हूं,
‘मेरे हालात भापं कर ‘ कहकहे ‘ मत लगाओ,
‘आज’ तुम्हारा जरूर है, खुदा ‘मेहरबान’ है तुझ पर,
‘अगले पल क्या होने वाला है , बेखबर है तू ?
[9]
‘यदि किसी की मदद के लिए ,
‘तूने लेन-देन कर लिया,
‘करके भूल जा फौरन,
‘बता दिया’ तो ,’मिट्टी कर दिया समझो’ !
‘तूने लेन-देन कर लिया,
‘करके भूल जा फौरन,
‘बता दिया’ तो ,’मिट्टी कर दिया समझो’ !
[10]
‘भ्रष्टाचार’ ‘कुप्रबंध’ देश में अपनी ‘ जड़ें ‘ पूरी तरह जमा चुका है,
‘हर प्राणी’ ‘अभिमन्यु’ की तरह ‘मौत के चक्रव्यूह’ में फंसा सा लगता है’ !
‘हर प्राणी’ ‘अभिमन्यु’ की तरह ‘मौत के चक्रव्यूह’ में फंसा सा लगता है’ !