[1]
‘जीवन को ‘गुलाब’ की भांति समझ’ ,
‘स्नेह’ को उसका शहद ‘,
‘शहद’ को भँवरे की तरह से चख’ ,
‘आनंद में गोते लगा ‘|
[2]
‘अहंकार में जीता है ‘ ‘संस्कार’ में पला नहीं ‘,
‘बेपैंदी का लोटा है ‘तू किसी काम का नहीं ‘|
[3]
‘गर्द-गुब्बार था चारों तरफ’ ,
‘त्राहि त्राहि का शोर था ‘,
‘मेरी फितरत थी मुस्कराने की’ ,
‘खिलखिलाता चला गया ‘|
[4]
‘समय’ को समय चाहिए ‘,
‘सब कुछ बदलता है ‘,
‘न ‘मैं’-मैं रहूँगा ,’न तुम ‘तुम रहोगे’,
‘एकाकार भी हो जाएंगे ‘|
[5]
‘आँधियाँ क्या चली , सब कुछ धराशायी हो गया ‘,
‘जो ,उस समय भी झुका रहा ‘,’आज भी खड़ा है ‘|
[6]
‘वो तुम्हारी ‘परवाह’ करता रहा’,
‘तुम ‘लापरवाह’ बने रहे ‘,
‘अहसास का हीरा गवां दिया ‘,
‘अब पछताए क्या होत ‘|
[7]
‘अहंकारी’ सदा दूसरे से माफी मांगने की उम्मीद करता है ‘,
‘स्नेही’ चाहे-अनचाहे ‘ माफी मांग कर”अहोभागी समझता है ‘|
[8]
‘जो परेशानियों से लड़ता नहीं’ ,
‘एक हारा हुआ प्राणी है ‘,
‘साहस’ वो नज़ीर तोहफा है’ ,
‘जो हारने नहीं देता कभी ‘|
[9]
‘जिंदगी तो हम सरलता से जी सकते हैं,
‘सस्ती भी है’,
‘हमने जीने के शौक महंगे कर लिए’,
‘तो कोई क्या करे बता ‘|
[10]
‘किस्मत की लकीरों को ‘मेहनत का पानी ‘ बदल सकता है ‘,
‘बिना हाथ हिलाये तो नवाला भी मुंह में नहीं जाता ‘|
[11]
‘दुआएं कुछ ऐसे करो ‘,
‘मुसीबतों का जाल कट जाए ‘,
‘कई बार हवाएँ भी ‘,
‘मौषम का मिजाज बदल देती हैं ‘|