[1]
‘बड़ा दर्द होता है जब विश्वासी’ ,
‘हमारा विश्वास तोड़ता है ‘,
‘और जब हमने किसी का दिल तोड़ा’,
‘वो फिर भी विश्वास करता रहा ‘|
[2]
‘ज्यूँ निराकार बिजली बिना ‘
‘बल्ब,पंखे ‘ खोखे सरीखे हैं ‘,
‘त्यूँ बिना चेतन आत्मा’ ,
‘सुंदर ,स्वस्थ शरीर भी व्यर्थ है ‘|
[3]
‘सूखे रेत को कितना भी मुट्ठी में बंद करो,निकल जाता है’,
‘ऐसे ही सांसारिक वस्तु आपकी पकड़ में रह नहीं सकती ‘,
‘सारे प्रयास व्यर्थ हैं और आपका आशा करना मिथ्या है ‘,
‘फिर इनके पीछे पागलपन क्यों ? जरा सोच कर तो देखो ‘|
[4]
मेरी सोच
‘देह तो निरंतर पाँच तत्वों की ओर सरकती जा र ही है ‘,
‘यह जानते हुए भी हम नाना विधि अनर्थ किए जाते हैं ‘|
[5]
‘कामयाबी के दरवाजे खटखटाये बिना खुलते ही नहीं ‘,
‘कर्मयोग की चाबी लगा, ‘खटखटाये बिना खुल जाएंगे ‘|
[6]
‘निगाह पवित्र है तो हर चीज में खूबसूरती ढूंढ लेती हैं ‘,
‘बुरी नजरवालों को तो ताजमहल भी बासी नज़र आता है ‘|
[7]
‘हर वक्त ज़ेब भरी रही तो भटक सकते हो ‘,
‘और खाली ज़ेब भी कबूतर बना देगी तेरा, ‘
‘जरूरत भर का समान जीना सीखा देगा तुझे’ ,
‘हर चीज की अधिकता,डांवाडोल रक्खेगी तुझे’|
[8]
‘बहता पानी सबको शुद्ध करता है’,
‘कचरा खुद किनारे लग जाता है’,
‘भलाई का दामन पकड़’,
‘बुराई स्वम रास्ते से हट जाएगी ‘|
[9]
मेरी सोच !
‘तू-तड़क न करें , छोटी-मोटी बातों में न उलझें ,गुस्सा न करें ‘,
‘ईगो से बचें , अपनापन बढ़ाएँ , एक-दूसरे पर उंगली न उठाएँ ‘,
‘सुख-दुःख को मिल कर भोगें , सकारात्मक सोचें , उत्तम करें ‘,
‘रिस्तों की डोर मजबूत करें,अपने बहुमूल्य रिस्तों को संवारें’|
[10]
‘पाप की गठरी बांधे फिरता’
‘तू कैसा इंसान’ ,
‘सत्कर्मों की पौध लगा दे’
‘देर न कर श्रीमान ‘|