Home कविताएं ‘कुछ समझने की जरूरत है ‘ कुछ सामयिक छंद !

‘कुछ समझने की जरूरत है ‘ कुछ सामयिक छंद !

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[1]

‘तुझे  ‘समय’  और  ‘समझ’  दोनों  मिले’ ,’भाग्यशाली  हो ‘,
‘अक्सर  लोग समय  पर  समझते  नहीं’ ,’नादान  रहते  हैं ‘|

[2]

‘औलाद  ‘कमाऊ  और  संस्कारी  है ”तो  जीते  हुए  समझो ‘
‘अगर ‘आवारा और बेकार है’ ,’बदनसीब तुझसा नहीं कोई ‘|

[3]

‘प्रभु को  याद करके  अपनी  सुरक्षा की  मजबूत  कर ‘,
‘आसुरी प्रवत्ति में जीता रहा तो ,डूब जाएगा एक दिन ‘|

[4]

‘गलतफहमी  से  रिस्तों  में  दूरियाँ  बढ़ाना  निश्चित  है ‘,
‘ जो  हम  नहीं  कहते  वो  भी  , सुनाई  देने  लगता  है ‘|

[5]

“पाप  की  गठरी  बांधे  फिरता ‘,’तू  पागल  इंसान ‘,
‘जीवन  का तूने  मर्म  न जाना ‘,बेच  दिया  ईमान ” |

[6]

‘सबको  पता  है  ‘शमशान’  ही  अंतिम  पड़ाव  है ‘,
‘फिर भी आसक्ति में लिप्त है ,कुछ डर नहीं लगता ‘

[7]

‘तुम्हारे  कारण  कोई  तो  रोये और  उधर  तुम  कथा  भागवत  कराते  रहे ‘,
‘  प्रभु  हसेंगे  तेरी  नादानी  पर  क्योंकि  तुम  कितना  ढोंग  रचाते  हो  ‘|

[8]

‘राहें  कटीली  हैं , सत्कर्म  से  सफाई  करता  चल ,’जी जाएगा ‘,
‘अफसोस ! मानव- ‘जिंदगी ढलने तक कुछ समझ नहीं पाता ‘|

[9]

‘कसम खाओ- रोज़ किसी न किसी को मुस्कराने का अवसर दोगे ‘,
‘यदि ऐसा कर पाये तो फिर ,मंदिर में घंटा बजाने की जरूरत नहीं ‘|

[10]

‘दर्द  देने  वाले  अनेकों  मिल  जाएंगे ,सहलाने  वाले  नहीं  मिलते ‘,
‘अगर घर में आग लग जाए तो ,बुझाने वालों को ढूंढते रह जाओगे ‘|

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