[1]
जरा सोचो
‘सत्य’ बोलते नहीं , ‘झूठ’ छोड़ते नहीं , ‘क्रोध’ से उबले पड़े हो,
‘पंचतत्व’ में मिलना सुनिश्चित है, कभी तो ‘सही इंसान’ बन जाते !
[2]
क्या सोचो
‘प्यार की बरसात’ में भीगी रहे, ‘अट्टहास’ भी करते रहे तो,
‘सूखी टहनियां’ हरी हो जाएंगी, ‘जीवन’ खिल-खिल खिलाएगा !
[3]
जरा सोचो
‘करुणा’ और ‘दया’-‘ मानवता’ की जरूरतें हैं, ‘परवान’ चढ़ती नहीं दिखती,
आजकल ‘आप’ घर में हो, ‘फुर्सत’ में हो, इनका ‘शिलान्यास’ कर डालो |
[4]
जरा सोचो
हम कभी ‘नफरत’ परोसते हैं, कभी ‘नजर-अंदाज’ करते हैं,
रोज ‘रिश्तों’ का ‘कत्ल’ करते हैं, ‘स्वाभाविक’ कुछ भी नहीं !
[5]
जरा सोचो
‘विश्वास’ और ‘स्नेह’ की ‘दीवार’ चिनने में ‘उम्र’ लग जाती है,
‘परिवार की कीमत’ का एहसास होता, तो ‘कच्चा-पक्का’ नहीं बोलते !
[6]
जरा सोचो
बड़ा ‘सिर’ उठा कर चलता है, एक दिन ‘धोखा’ ही खायेगा,
सीमाओं में ‘सिर’ ‘झुका कर’ जो चला, समाज ने ‘सिर पर’ उठा लिया !
[7]
जरा सोचो
‘हौसले’ जिंदा हैं तो ‘टूटे ख्वाब ‘ भी किसी दिन ‘जुड़’ जाएंगे,
‘दर्द ‘ तो हर प्राणी को है, ‘सार्थक प्रयास’ ही सर्वोत्तम ‘दवाई’ है !
[8]
जरा सोचो
‘ दुनियां ‘ को घमंड था , ‘ परमाणु ‘ से दुनियां को ‘ मिटा ‘ देंगे,
‘कोराना के कीटाणु’ ने ‘तमन्ना’ पूरी कर दी सबको ‘मिटाने’ की ! गजब !
[9]
जरा सोचो
अच्छे /बुरे ‘दिन’ तो सभी के आते हैं , ‘ मेहनत ‘ तो कीजिए ,
‘खुशियां’ भी आएंगी, ‘अनुभव’ भी आएगा, ‘जीने का सलीका’ भी जान जाओगे !
[10]
जरा सोचो
जिसकी ‘खुशियां’ सस्ती हैं, ‘महान’ प्राणी है,
आडंबर रहित ‘जीवन’ का कोई ‘तोड़’ नहीं है !