[1]
‘अपनी आत्मशक्ति को पल्लवित करते रहो,
‘एक न एक दिन गुलाब भी महक जाएंगे’ !
[2]
‘संसार परिवर्तनशील , बेवफा ,शांति रहित सा है,
‘विरोधाभासों का प्रतिरूप है,’जिए तो कैसे जिए बता’ ?
[3]
‘यदि हम कम बुद्धि वालों को सताएं ,’निर्धनों को परेशान करें,
‘अपना रोब गाठते रहें , इसका नाम पशुता है, पूर्ण शोषण है’ !
[4]
‘असीम चाहत, व्यक्तिगत स्पर्धा, जल्दी अरबपति बनने की कामना,
‘ ये ईर्ष्या , द्वेष – भाव और प्रतिद्वंदिता को बढ़ा देते हैं ‘ !
[5]
‘दूसरों के काम में टांग अड़ाने का समय सभी के पास है ,
‘बिगड़ते काम को सही राह पर ले जाने की,’किसी को फुर्सत नहीं’ !
[6]
‘आजकल आपसी समझ और स्नेह ,’ भूमिगत हो गया लगता है,
‘अधिकतर लोग गुस्सा , प्रतिशोध और असहिष्णुता की लपेट में है’ !
[7]
‘यदि हाथ नहीं पकड़ा मेरा, ‘जगत की भीड़ में खो जाऊंगा,
‘ऐसी कृपा कर दो प्रभु, ‘सभी की कृपा का पात्र बना रहूं’ !
[8]
4 वर्ष से 90 वर्ष की स्त्री भी सुरक्षित नहीं है देश में,
दूषित मनोवृति के लोग सबको उपभोग की वस्तु समझते हैं,
मां ,बहन ,बेटी का अंतर समझते हुए भी बेरुखी टपकती है,
जिधर भी देखे ,’रिश्तो की गरिमा और अहमियत’ नदारद है !
[9]
‘आजकल शिक्षा का व्यापारीकरण है,’हर प्राणी नफा नुकसान देखता है,
‘अब वे राजनीतिज्ञों के आश्रय में पनाह को , सौभाग्यशाली समझते हैं’ !
[10]
‘उपदेश ‘भटके प्राणियों को सही राह दिखाने को होते हैं,
‘जो उन्हें सुनकर भटक जाए, ‘कदापि सहयोगी नहीं मिलते’ !