जरा सोचो
‘हार जीत’ के फैसले ‘ शैतानी मस्तिष्क’ की उपज है,
जब यह ‘शरीर’ छोड़ जाना है, ये ‘हायतोबा’ किसलिए ?
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जरा सोचो
‘ना कभी उम्मीद करो , ना मांग करो , न पूछो , न अंदाज लगाओ,
‘जो होना है – हो जाएगा , ‘कल्पना के घोडों’ को आराम करने दो’ !
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जरा सोचो
‘अपने हाल सुनाते रहो, हमारे जानते रहो,
‘ यही तो जीवन की ‘ सामान्य घटना ‘ है’ !
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जरा सोचो
‘ हर किसी के साथ ‘संबंध’ जरूरी नहीं ‘अच्छे’ ही रहे,
‘हर किसी पर ‘अपने राज़’ खोल दोगे तो बहुत ‘पछताओगे’ !
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जरा सोचो
‘ऐसी कृपा करना प्रभु , भूल मत जाना ,
‘ मेरा हर ‘कदम’ ‘सत्कर्म की दिशा’ में ही बढे’ !
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जरा सोचो
‘ जीवन में ‘तमन्नायें’ और ‘समस्याएं’ कभी खत्म नहीं होती,
‘ जितनी ‘शांति’ से ‘जी’ सको ‘जी’ लो , हायतोबा किसलिए’ ?
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जरा सोचो
‘ जब ‘सुख’ आया तो भूलकर भी ‘भगवान’ याद नहीं आए,
‘आज ‘दुख’ आया है तो उसके ‘दर पर माथा’ रगड़ता है,’ गजब !
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जरा सोचो
‘मां- बाप’ खुश हैं तभी ‘घर की खुशियां’ सलामत है,
‘उलझनों का बवंडर’ भी उनका कुछ ‘बिगाड़’ नहीं पाता’ ! ‘
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जरा सोचो
‘ बिना ‘पहचान पत्र’ घर से निकल पड़े, चेक पोस्ट पर ‘धरे’ गए ,
‘चालान’ कटते ही ‘एहसास’ जागा, अब ‘सरकार’ जागी है’ !
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जरा सोचो
‘बिजली’ बिना बताए ‘समय – असमय’ चली जाती है ,
‘शायद यह सरकार की ‘चरित्रहीन पुत्री’ नजर आती है’ !