Home ज़रा सोचो ‘कुछ छोटी-छोटी बातें ‘ जिन पर हम ‘ध्यान’ ही नहीं देते ‘पर हैं बड़े काम की” |

‘कुछ छोटी-छोटी बातें ‘ जिन पर हम ‘ध्यान’ ही नहीं देते ‘पर हैं बड़े काम की” |

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जरा सोचो
‘हार  जीत’  के  फैसले  ‘ शैतानी  मस्तिष्क’  की  उपज  है,
जब  यह ‘शरीर’ छोड़ जाना  है, ये  ‘हायतोबा’  किसलिए ?

[2]

जरा सोचो
‘ना  कभी  उम्मीद  करो , ना  मांग  करो ,  न  पूछो , न  अंदाज  लगाओ,
‘जो  होना  है – हो  जाएगा , ‘कल्पना  के  घोडों’  को  आराम  करने  दो’ !

[3]

जरा सोचो
‘अपने  हाल  सुनाते  रहो, हमारे  जानते  रहो,
‘ यही  तो  जीवन  की ‘ सामान्य  घटना ‘  है’ !

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जरा सोचो
‘ हर  किसी  के  साथ  ‘संबंध’  जरूरी  नहीं  ‘अच्छे’  ही  रहे,
‘हर  किसी पर ‘अपने राज़’ खोल  दोगे  तो बहुत ‘पछताओगे’ !

]5]

जरा सोचो
‘ऐसी  कृपा  करना  प्रभु ,  भूल  मत  जाना ,
‘ मेरा हर ‘कदम’ ‘सत्कर्म की दिशा’ में ही बढे’ !

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जरा सोचो
‘ जीवन  में ‘तमन्नायें’ और ‘समस्याएं’ कभी  खत्म  नहीं  होती,
‘ जितनी ‘शांति’  से ‘जी’  सको ‘जी’  लो , हायतोबा  किसलिए’ ?

[7]

जरा सोचो
‘ जब  ‘सुख’  आया  तो  भूलकर  भी  ‘भगवान’  याद  नहीं  आए,
‘आज ‘दुख’ आया  है तो उसके ‘दर  पर माथा’ रगड़ता  है,’ गजब !

[8]

जरा सोचो
‘मां- बाप’  खुश  हैं  तभी  ‘घर  की  खुशियां’  सलामत  है,

‘उलझनों  का  बवंडर’ भी  उनका  कुछ ‘बिगाड़’  नहीं  पाता’ ! ‘

[9]

जरा सोचो
‘ बिना ‘पहचान पत्र’ घर से निकल पड़े, चेक पोस्ट पर ‘धरे’ गए ,
‘चालान’  कटते  ही ‘एहसास’  जागा,  अब ‘सरकार’  जागी  है’ !

[10]

जरा सोचो
‘बिजली’  बिना  बताए  ‘समय – असमय’  चली  जाती  है ,
‘शायद  यह सरकार  की ‘चरित्रहीन  पुत्री’ नजर  आती  है’ !

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