Home ज़रा सोचो “कुछ ऐसे भी सोचते तो जीवन में आनंद भर जाता ‘|

“कुछ ऐसे भी सोचते तो जीवन में आनंद भर जाता ‘|

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[1]

” राधे  मैं   कहीं  भी  रहूँ  तुम्हारे  दिल  से  निकल  नहीं  सकता’ ,
‘पवित्र स्नेह  की धारा  भिगोये रखती  है मुझे’,’मस्त  रहता  हूँ  उसमें’ |

[2]

‘उनकी  बकवास  का  उत्तर  नहीं  दिया ,
‘वो  हमें  कमजोर  समझने  लगे ‘,
‘हम  कीचड़  में  पत्थर  नहीं  फेंकते,
‘दिल  और  दिमाग’  से  बेदाग  रहते  हैं’|

[3]

‘तेरी  बनाई  फज़ल  का  एक  किरदार   हूँ  मालिक  ‘,
‘कैसे भी  नचा ले  मुझे ,’पास हो  कर  ही  दिखाऊँगा ‘|

[4]

‘न  मुरादों  के  पर्चे” न  मन्नत  के  धागे’
‘कभी  कुछ  काम  आते  हैं ‘,
‘सिर्फ  कर्मकार  बन  कर  दिखा ,
‘उसकी’  मर्जी  भी  जुड़  जाएगी ‘|

[5]

‘ अच्छे   संस्कारों   की   पूंजी   आजीवन  काम  आएगी ‘,
‘दुनियांदारी  में उलझे  पड़े  हो ,’कब सुधरोगे  ये  तो  बता ‘?

[6]

‘तुम्हारी  जुबान  दौलतमंद  समझो , अगर  सबके  मन  मोह  लेती  है ‘,
‘खर्चा  कुछ  भी  नहीं  और ‘आशीर्वाद   का  प्रसाद’  खूब  मिलता  है ‘|

[7]

‘फिकर’ बहुत  हैं  ये  निढाल  करने  में  कोई  कसर  नहीं  रखती ‘,
‘ नामुराद  उम्मीदें ‘  उल्लू  बनाए  रखती  हैं ‘ ‘कम  नहीं  होती ‘|

[8]

‘मेरे  पास  सिर्फ  खुशियाँ  हैं  उन्हीं  को  बाँट  देता  हूँ ‘,
‘चौगुनी  मिल  जाती  हैं  खजाना   कम  नहीं  होता ‘|

[9]

‘खुशियों  के  भंडार  भरे  हैं  हर  जगह,
‘उन्हें  ढूंढते  ही  नहीं ‘,
‘नफरत ,उदासी ,झूठ ,फसाद  से  बचो,
‘कंचन’  कहलाओगे ‘|

[10]

‘छोटे-छोटे  सुविचारों’ से  भी’बड़े -बड़े  बदलाव’ उत्पन्न  होते  हैं ‘,
‘दम-घोटू  विचारों  से  पीछा  छुड़ा ,’कुछ  न  कुछ  करके  दिखा’|

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