[1]
‘पानी’ कितना नरम है, ‘बहाव में ‘चट्टानों को चकनाचूर’ कर देता है,
किसी को सामान्य समझ ‘तिरस्कारना’, ‘ अविवेकपूर्ण कदम ‘ ही है !
[2]
‘संघर्षों के बीच’ जिसने अपने को ‘संभाला’, वही ‘बलवान’ है,
‘जिसने अपना ‘धीरज’ खोया ,’सब कुछ खो दिया समझो’ !
[3]
‘हमारा ध्यान’ संसार को देखने, सुंघने ,सुनने , चखने ,स्पर्श में लगा है,
‘आंतरिक आंख’ खुलती नहीं, ‘कान’ सुनते नहीं, ‘दिव्य दर्शन’ कैसे हों ?
[4]
‘प्रत्येक रेलयात्री’ सज्जन, विनम्र , सहायक , मृदुभाषी , है परंतु ,
‘टिकट’ नहीं लिया तो, बख्शा नहीं जाएगा, सब कार्य बेकार है,
‘इसी प्रकार ‘इंसान’ ‘प्रभु भक्ति’ नहीं करता, तो ‘कर्म हीन’ प्राणी है,
‘ज्ञान और कर्म’ के सहयोग से, ‘निष्काम भक्ति’ का फल मिलता है’ !
[5]
‘कार्य ‘ ‘ बतोलेबाजी’ से नहीं, ‘उद्यम शैली’ अपनाने से होते हैं,
‘हाथ पैर’ नहीं हिलाओगे तो , ‘टुकड़ा’ मुंह में नहीं आ पाएगा’ !
‘हाथ पैर’ नहीं हिलाओगे तो , ‘टुकड़ा’ मुंह में नहीं आ पाएगा’ !
[6]
‘योग- संयोग’ ‘हानि लाभ’ ‘जीवन- मृत्यु’ हर जीवन में है,
‘हाथ- पैर’ नहीं हिलाओगे, ‘कर्मकार’ नहीं बनोगे तो डूबोगे,
‘हाथ- पैर’ नहीं हिलाओगे, ‘कर्मकार’ नहीं बनोगे तो डूबोगे,
[7]
‘अगर उड़ने लगे’ ‘गिराने वालों की’ लाइन लग जाएगी,
‘ अगर गिर गए तो , ‘ उठाने वाला ‘ कोई नहीं होगा ‘ !
‘ अगर गिर गए तो , ‘ उठाने वाला ‘ कोई नहीं होगा ‘ !
[8]
‘तुम्हारी परवाह’ है हमको परंतु ,’आप ‘नजरअंदाज’ करते नहीं थकते,
‘जब हम नहीं होंगे ‘ तब समझोगे , ‘ क्या खो दिया तुमने ‘ ?
‘जब हम नहीं होंगे ‘ तब समझोगे , ‘ क्या खो दिया तुमने ‘ ?
[9]
‘बिना दिखावा’ ‘बिना मतलब’ भी किसी से मिला करो,
‘खुदगर्जी’ छोड़कर जब मिलोगे, ‘सिर पर बिठा लेंगे तुझे’ !
‘खुदगर्जी’ छोड़कर जब मिलोगे, ‘सिर पर बिठा लेंगे तुझे’ !