[1]
नव वर्ष के उपलक्ष में
किसी का ‘सहायक’ बनना, ‘बेशकीमती” उपहार है,
‘दिल के अमीर’ आजकल बहुत ‘कम’ पाए जाते हैं !
[2]
‘बड़े’ ‘अपनी कृपा बरसाते रहें ,’, ‘अपने’ साथ न छोड़े कभी’ ,
‘सबसे मिलजुल कर जीता रहूँ ‘, ‘बस इतनी तमन्ना है मेरी’ |
[3]
“सारी खुशियाँ लिए कोई दीप आपकी दहलीज़ पर सदा जलता रहे ” ,
“नये साल की शुरुआत से ही’ ,”आपकी उलझनों का दौर थम जाए “|
[4]
जरा सोचो
समाज में ‘परेशानियां’ बहुत है, परंतु ‘रास्ते’ भी अनेकों है,
कोई ‘समाधान’ के रास्ते ही न ‘खोजें’ ,तो क्या करें उनका ?
समाज में ‘परेशानियां’ बहुत है, परंतु ‘रास्ते’ भी अनेकों है,
कोई ‘समाधान’ के रास्ते ही न ‘खोजें’ ,तो क्या करें उनका ?
[5]
जरा सोचो
‘लक्ष्य’ रहित व्यक्ति ‘बिना पता’ लिखा ‘लिफाफा’ है,
चारों ओर ‘घूमता’ रहेगा परंतु ‘गंतव्य’ स्थान से रहित !
‘लक्ष्य’ रहित व्यक्ति ‘बिना पता’ लिखा ‘लिफाफा’ है,
चारों ओर ‘घूमता’ रहेगा परंतु ‘गंतव्य’ स्थान से रहित !
[6]
जरा सोचो
कौन कहता है ‘सूरज’ निकलते ही ‘अंधेरा’ भाग जाता है,
‘प्रकाश’ देखने हेतु ‘आंखें’ खुली रखना भी जरूरी है !
कौन कहता है ‘सूरज’ निकलते ही ‘अंधेरा’ भाग जाता है,
‘प्रकाश’ देखने हेतु ‘आंखें’ खुली रखना भी जरूरी है !
[7]
जरा सोचो
प्रभु ने ‘तकलीफ’ देकर आपका ‘आत्मविश्वास’ परख लिया,
जिस ‘लायक’ भी तू था, उसी अनुसार ‘सब’ दे दिया तुझको !
प्रभु ने ‘तकलीफ’ देकर आपका ‘आत्मविश्वास’ परख लिया,
जिस ‘लायक’ भी तू था, उसी अनुसार ‘सब’ दे दिया तुझको !
[8]
जरा सोचो
‘ख्वाब’ में आए, ‘चलो आए तो सही’, इसमें भी ‘तसल्ली’ है,
उनके ‘रूबरू’ होने का ‘एहसास’ भी जागा, ‘चेहरा’ सुर्ख हो गया !
‘ख्वाब’ में आए, ‘चलो आए तो सही’, इसमें भी ‘तसल्ली’ है,
उनके ‘रूबरू’ होने का ‘एहसास’ भी जागा, ‘चेहरा’ सुर्ख हो गया !
[9]
जरा सोचो
‘अपनों’ से मिलते ही ‘सुख’ बढ़ जाए, ‘दुख’ घट जाए, सदा उत्तम ,
जहां ऐसा नहीं ‘ घटता ‘, ‘ मिलना ना मिलना ‘ बराबर है !
‘अपनों’ से मिलते ही ‘सुख’ बढ़ जाए, ‘दुख’ घट जाए, सदा उत्तम ,
जहां ऐसा नहीं ‘ घटता ‘, ‘ मिलना ना मिलना ‘ बराबर है !
[10]
जरा सोचो
‘मुस्कुराहट’ भी एक ‘अजब पहेली’ सरीखी लगती है आजकल,
‘बहुत कुछ’ बता देती है फिर भी, ‘बहुत कुछ’ छुपा लेती है !
‘मुस्कुराहट’ भी एक ‘अजब पहेली’ सरीखी लगती है आजकल,
‘बहुत कुछ’ बता देती है फिर भी, ‘बहुत कुछ’ छुपा लेती है !