Home ज़रा सोचो ‘कर्म को उत्तम बना आज में ही जी ,प्रभु को याद रख ,मन को निर्मल ही रख ‘!

‘कर्म को उत्तम बना आज में ही जी ,प्रभु को याद रख ,मन को निर्मल ही रख ‘!

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[1]

‘जिसने कर्म का मर्म समझ लिया’ , जो चित्त निर्मल रखना सीख गया ‘,
‘राग-द्वेष  के  मैल  धोने  लगा ‘,’चिंतन  की  दृष्टि  उत्तम  बनी  समझो ‘|

[2]

‘आज’  खो  दिया  ‘कल’  के  लिए’ ,
‘कल’  कभी  आया  नहीं ‘,
‘आज’  में  ही  जी  लेते  तो  अच्छा  था ‘,
‘यही  अफसोस  भारी  है ‘|

[3]

‘ रिहायशी  हालात  तो  आर्थिक  हालात  के  अनुसार  ही  बनते  हैं ‘,
‘यदि कहीं बुजुर्ग  मुस्कराते  मिलें’ ,’अमीरों  का आशियाना  समझ ‘|

[4]

‘किसी  दिन  आपस  का  साथ  छूट  जाएगा ‘,
‘साँसों  का  पिंजरा  किसी  दिन  टूट  जाएगा ‘,
‘आओ  बाकी  समय  प्यार  से  ही  जी  लें ‘,
‘क्या  पता  कब  किसका  किससे  साथ  छूट  जाएगा ‘|

[5]

‘ मैं  गुमान  में  भर  कर  तैरने  लगा’ ,
‘तो  डूब  गया ‘,
‘जब  ‘उसका’  नाम  ले  कर  उतरा’ ,
‘किनारे  जा  लगा ‘|

[6]  

‘राम  राज  में  केकई  नहीं  सुधरी’ ,
‘विभीषण’  रावण  राज  में  नहीं  बिगड़ा ‘,
‘हर  किसी  के  स्वभाव  का  स्वभाव  है’ ,
‘माहौल’  निचले  पायदान  पर  है ‘|

[7]

 ‘जीवन  का  मकसद  समुन्नत  किए  रक्खो,’
‘सदा  बेसुरी  बातों  से  बच  कर  चलो ‘,
अनेकों  महान  बनने  का  प्रयास  करते  हैं’,
‘आपाधापी  उन्हें  आगे  बढ्ने  नहीं  देती ‘|

[8]

‘ एकता  के  सूत्र  में  बंध कर’ ,’नेकियाँ  करना  शुरू  कर  दो ‘,
‘दृष्टि  व्यापक  बनाओ  और  संकीर्णता से  ऊपर  उठाने  का  प्रयास  करो ‘|

[9]

‘दीप  से  दीप  जलता  है ‘,
‘बातचीत  का  सिलसिला  जारी  रक्खो ‘,
‘सहयोग  की  भावना  अपनी  शोभा’ ,
‘हर  हाल  में  बिखेर  देती  है ‘|

[10]

‘यदि  हमें  उठते-बैठते ,सोते-जागते ,
‘सत्य ‘ का अहसास  होता  है ‘,
‘हमारा  मन  निर्मल  व  पवन  रहता  है’ ,
‘झूठ’  भाग  जाता  है ‘|

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