[1]
जरा सोचो
लड़ना/झगड़ना , पिटना/पीटना , परंतु ‘बोलचाल’ बंद मत करना,
‘सुलह के रास्ते ‘ बंद हो जाएंगे , ‘ जीने के रंग ‘ फीके पड़ जाएंगे !
[2]
जरा सोचो
कभी ‘ गुस्सा ‘ भी आ जाए तो भी ‘ बैर ‘ मत पालना,
‘क्षणिक आवेश’ ‘प्यार के परिवेश’ को ‘चकनाचूर’ कर देगा !
[3]
जरा सोचो
‘जवानी’ में भागमभाग ‘आवारगी’ से ही ‘फुर्सत’ नहीं मिलती,
‘स्नेह की बारिश’ ‘बुढ़ापे’ की देन है , चलो ‘बुढ़ापा’ ही सुधारा जाए !
[4]
जरा सोचो
हमने न ‘ नाम ‘ लिया , न ‘ मांगा ‘ ‘ प्रभु से तुमको,
दिल की ‘पुकार’ सुनकर ‘तुम्ही’ से मिला दिया ‘उसने’ !
[5]
जरा सोचो
‘ हम ‘ तो खुली ‘ किताब ‘ थे , यार ही ‘ समझ ‘ नहीं पाया,
सभी ‘ फिजाएं ‘ हमारी होती , ‘ चौबारा ‘ भी हमारा ही होता !
[6]
जरा सोचो
‘मां- बाप’ के पास ‘दो पल’ बिताना , जीवन का ‘सर्वोत्तम’ उपहार है,
उनकी ‘अवहेलना’ और दूसरों से ‘गुफ्तगूं,’ ‘ दीवानेपन ‘ का सबूत है !
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जरा सोचो
‘राधा- कृष्ण’ को जानते हो ,’स्नेह’ की ‘अविस्मरणीय’ कथा लिखो,
‘भुनभुना’ कर ‘जीना’- ‘जीना’ नहीं होता, ‘ प्यार की हाला ‘ को पी !
[8]
जरा सोचो
जीवन में ‘ बदलाव ‘ लाने हेतु , ‘ नया सवेरा ‘ रोज आता है ,
रोज नए नए ‘अवसर’ भी आते हैं, अपने ‘प्रयासों’ को जारी तो रख !
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जरा सोचो
‘जिसने’ सब कुछ दिया , अनेकों लोग उससे भी ‘ नाराज ‘ मिलते हैं,
यह क्यों दिया ? यह क्यों नहीं ? यह ‘फलसफा’ हम ‘रोज’ सुनते हैं !
[10]
जरा सोचो
किसी को ‘स्नेह’ से ‘नवाजो’ या ‘सम्मान’ दो, ‘तोहफे’ दोनों समान हैं,
इस ‘होली’ पर इनका ‘सदुपयोग’ , सबके ‘दिल’ में जगह बना देगा !