एक दिन मंगलवार की सुबह वॉक करके रोड़ पर बैठा हुआ था , हल्की हवा और सुबह का सुहाना मौसम बहुत ही अच्छा लग रहा था , तभी वहाँ एक Hundai tucson आ कर रूकी , और उसमें से एक वृद्ध उतरे , अमीरी उसके लिबाज और व्यक्तित्व दोनों बयां कर रहे थे ।
वे एक पॉलीथिन बैग ले कर मुझसे कुछेक दूर ही एक सीमेंट के चबूतरे पर बैठ गये , पॉलीथिन चबूतरे पर उंडेल दी , उसमे गुड़ भरा हुआ था , अब उन्होने आओ आओ करके पास में ही खड़ी बैठी गायों को बुलाया , सभी गाय पलक झपकते ही उन बुजुर्ग के इर्द गिर्द ठीक ऐसे ही आ गई जैसे कई महीनो बाद बच्चे अपने बाप को घेर लेते हैं , कुछ को उठा कर खिला रहे थे तो कुछ स्वयम् खा रही थी , वे बड़े प्रेम से उनके सिर पर हाथ फेर रहे थे ।
कुछ ही देर में गाय अधिकांश गुड़ खा कर चली गई , इसके बाद जो हुआ वो वो वाकया हैं जिसे मैं ज़िन्दगी भर नहीं भुला सकता |
हुआ यूँ की गायो के खाने के बाद जो गुड़ बच गया था वो बुजुर्ग उन टुकड़ो को उठा उठा कर खाने लगे , मैं उनकी इस क्रिया से अचंभित हुआ पर उन्होंने बिना किसी परवाह के कई टुकड़े खाये और अपनी गाडी की और चल पड़े ।
मैं दौड़ कर उनके नज़दीक पहुँचा और बोला अंकल जी क्षमा चाहता हूँ पर अभी जो हुआ उससे मेरा दिमाग घूम गया क्या आप मेरी जिज्ञाषा शांत करेंगे की आप इतने अमीर होकर भी गाय का झूँठा गुड क्यों खाया ??
उनके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान उभरी उन्होंने खिड़की वापस बंद की और मेरे कंधे पर हाथ रख वापस सीमेंट के चबूतरे पर आ बैठे , और बोले ये जो तुम गुड़ के झूँठे टुकड़े देख रहे हो ना बेटे मुझे इनसे स्वादिष्ट आज तक कुछ नहीं लगता । जब भी मुझे वक़्त मिलता हैं मैं अक्सर इसी जगह आकर अपनी आत्मा में इस गुड की मिठास घोलता हूँ ।
मैं अब भी नहीं समझा अंकल जी आखिर ऐसा क्या हैं इस गुड में ???
वे बोले ये बात आज से कोई 40 साल पहले की हैं उस वक़्त मैं 22 साल का था घर में जबरदस्त आंतरिक कलह के कारण मैं घर से भाग आया था , परन्तू दुर्भाग्यवश ट्रेन में कोई मेरा सारा सामान और पैसे चुरा ले गया । इस अजनबी शहर में मेरा कोई नहीं था , भीषण गर्मी में खाली जेब के दो दिन भूखे रह कर इधर से उधर भटकता रहा , और शाम को जब भूख मुझे निगलने को आतुर थी तब इसी जगह ऐसी ही एक गाय को एक महानुभाव गुड़ डाल कर गया ,यहाँ एक पीपल का पेड़ हुआ करता था तब चबूतरा नहीं था , मैं उसी पेड़ की जड़ो पर बैठा भूख से बेहाल हो रहा था , मैंने देखा की गाय की गाय ने गुड़ छुआ तक नहीं और उठ कर चली गई , मैं कुछ देर किंकर्तव्यविमूढ़ सोचता रहा और फिर मैंने वो सारा गुड़ उठा लिया और खा लिया । मेरी मृतप्रायः आत्मा में प्राण आ गये । मैं उसी पेड़ की जड़ो में रात भर पड़ा रहा , सुबह जब मेरी आँख खुली तो काफ़ी रौशनी हो चुकी थी , मैं नित्यकर्मो से फारिक हो किसी काम की तलास में फिर सारा दिन भटकता रहा पर दुर्भाग्य मेरा पीछा नहीं छोड़ रहा था , एक और थकान भरे दिन ने मुझे वापस उसी जगह निराश भूखा खाली हाथ लौटा दिया ।
शाम ढल रही थी, कल और आज में कुछ भी तो नहीं बदला था , वही पीपल , वही भूखा मैं और वही गाय ।
कुछ ही देर में वहाँ वही कल वाले सज्जन आये और कुछेक गुड़ की डलिया गाय को डाल कर चलते बने , गाय उठी और बिना गुड़ खाये चली गई , मुझे अज़ीब लगा परन्तू मैं बेबस था सो आज फिर गुड खा लिया मैंने और वही सो गया , सुबह काम तलासने निकल गया , आज शायद दुर्भाग्य की चादर मेरे सर पे नहीं थी सो एक ढ़ाबे पे पर मुझे झूँठे बर्तन धोने का काम मिल गया ।
कुछ दिन बाद जब मालिक ने मुझे पहली पगार दी तो मैंने 1 किलो गुड़ ख़रीदा और किसी दिव्य शक्ति के वशीभूत 7 km पैदल चल कर उसी पीपल के पेड़ के नीचे आया नज़र दौड़ाई तो गाय भी दिख गई , मैंने सारा गुड़ उस गाय को डाल दिया , इस बार मैं अपने जीवन में सबसे ज्यादा चौंका क्योकि गाय सारा गुड़ खा गई , जिसका मतलब साफ़ था की गाय ने 2 दिन जानबूझ कर मेरे लिये गुड़ छोड़ा था , मेरा हृदय भर उठा उस ममतामई स्वरुप की ममता देखकर , मैं रोता हुआ ढ़ाबे पे पहुँचा , और बहुत सोचता रहा , फिर एक दिन मुझे एक फर्म में नौकरी मिल गई , दिन बे दिन मैं उन्नति और तरक्की के शिखर चढ़ता गया , शादी हुई बच्चे हुये आज मैं खुद की फर्म का मालिक हूँ ,|
जीवन की इस लंबी यात्रा में मैंने कभी भी उस गाय माता को नहीं भुलाया , मैं अक्सर यहाँ आता हूँ और इन गायो को गुड़ डाल कर इनका झूँठा गुड़ खाता हूँ , मैं लाखो रूपए गौ शालाओं में चंदा देता हूँ , परन्तू मेरी मृग तृष्णा यही आ कर मिटती हैं बेटे ।
मैं देख रहा था वे बहुत भावुक हो चले थे , समझ गये अब तो तुम , मैंने सिर हाँ में हिलाया , वे चल पड़े ,गाडी स्टार्ट हुई और निकल गई , मैं उठा उन्ही टुकड़ो में से एक टुकड़ा उठाया मुँह में डाला सचमुच वो कोई साधारण गुड़ नहीं था उसमे कोई दिव्य मिठास थी जो जीभ के साथ आत्मा को भी मीठा कर गई |