[1]
जरा सोचो
‘ना ‘ परिस्थितियों ‘ से हारा , ना अपनी ‘ उम्र ‘ से हारा,
‘उन्नति के रास्ते’ तलाशते रहना, ‘फितरत’ है मेरी जनाब’ !
[2]
जरा सोचो
‘ जिसकी कमाई में ‘पाप’ भरा है, ‘सुख’ का जीवन ‘जी ‘ नहीं पाता,
‘उसे भेड़िया’ समझो जो सिर्फ ‘धोखा’ परोसता है ‘,’ खून ‘ पीता है ‘ !
[3]
समय की पहचान
‘विश्वास’ खो रहा हूं , ‘ संतुलन ‘ खो रहा हूं ,’ मैं ‘ समय हूं ‘,
‘विकसित समाज’ के चेहरे की ‘सिकुडन’ बना ‘झुर्रियों’ सा हूं’ !
[4]
जरा सोचो
‘कान्हा ‘ आपके ‘ स्वरूप ‘ को देखे बिना ‘ तसल्ली ‘ नहीं होती,
‘ऐसी ‘कृपा’ कर दो, ‘आपका चेहरा’ आंखों के सामने ‘नजर’ आए’ !
‘कान्हा ‘ आपके ‘ स्वरूप ‘ को देखे बिना ‘ तसल्ली ‘ नहीं होती,
‘ऐसी ‘कृपा’ कर दो, ‘आपका चेहरा’ आंखों के सामने ‘नजर’ आए’ !
[5]
अहम —
श्री कृष्ण साक्षात मौजूद थे परंतु कंस दुर्योधन झोली नहीं भर पाए,
श्री राम सामने थे परंतु रावण की झोली भी खाली ही रह गई ,
मधुमास झूम झूम कर बरस रहा था उनके कंठ तर न हो सके,
उनका अहंकार आगे अड़ा रहा, खाली रह गए , सोचो गलत क्या है ?
[6]
जरा सोचो
‘आपकी सद्भावना का ‘झीना आवरण’ जिस दिन ‘तार-तार’ हो जाएगा,
‘ आपके व्यंग बाण , ताने , उलाहने ‘ , स्वयं सामने आ जाएंगे’ !
‘आपकी सद्भावना का ‘झीना आवरण’ जिस दिन ‘तार-तार’ हो जाएगा,
‘ आपके व्यंग बाण , ताने , उलाहने ‘ , स्वयं सामने आ जाएंगे’ !
[7]
जरा सोचो
‘सफेद झूठ’ प्यार से बोलोगे तो ‘ गले ‘ ‘ में उतरेगा , पछताओगे,
‘सच’ का स्वाद ‘कड़वा’ जरूर है, ‘आनंद की अनुभूति’ उसी में है’ !
‘सफेद झूठ’ प्यार से बोलोगे तो ‘ गले ‘ ‘ में उतरेगा , पछताओगे,
‘सच’ का स्वाद ‘कड़वा’ जरूर है, ‘आनंद की अनुभूति’ उसी में है’ !
[8]
मेरा विचार
” प्राणियों में ‘जीवन शक्ति’ का संचार तभी होगा जब हम अपनी ‘त्रुटियों , भूलो , न्यूनताओ ‘, को दूर करेंगे ! ‘भाग्यशाली’ नहीं ‘ कर्मकार ‘ बने रहने का प्रयास ही ‘ सार्थक जीवन’ है ” !