Home ज़रा सोचो उन्नति के रास्ते तलासते रहो , मंज़िल भी मिल जाएगी ‘ |

उन्नति के रास्ते तलासते रहो , मंज़िल भी मिल जाएगी ‘ |

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जरा सोचो
‘ना ‘ परिस्थितियों ‘  से  हारा ,  ना  अपनी  ‘ उम्र ‘  से  हारा,
‘उन्नति के रास्ते’ तलाशते रहना, ‘फितरत’ है मेरी जनाब’ !

[2]

जरा सोचो
‘ जिसकी  कमाई  में  ‘पाप’  भरा  है, ‘सुख’  का  जीवन  ‘जी ‘ नहीं  पाता,
‘उसे  भेड़िया’ समझो  जो  सिर्फ ‘धोखा’  परोसता  है ‘,’ खून ‘  पीता  है ‘ !

[3]

समय की पहचान
‘विश्वास’  खो  रहा  हूं , ‘ संतुलन ‘  खो  रहा  हूं ,’  मैं ‘ समय  हूं ‘,
‘विकसित समाज’ के चेहरे की ‘सिकुडन’ बना ‘झुर्रियों’ सा हूं’ !
[4]
जरा सोचो
‘कान्हा ‘ आपके ‘ स्वरूप ‘  को  देखे  बिना  ‘ तसल्ली ‘  नहीं  होती,
‘ऐसी ‘कृपा’ कर दो, ‘आपका  चेहरा’ आंखों  के सामने ‘नजर’ आए’ !
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अहम —
श्री  कृष्ण  साक्षात  मौजूद  थे  परंतु  कंस  दुर्योधन  झोली  नहीं  भर  पाए,
श्री  राम  सामने  थे   परंतु  रावण  की  झोली   भी  खाली  ही   रह   गई ,
मधुमास   झूम  झूम  कर  बरस  रहा  था  उनके  कंठ  तर  न  हो  सके,
उनका  अहंकार  आगे  अड़ा  रहा, खाली  रह  गए , सोचो  गलत  क्या  है ?
[6]
जरा सोचो
‘आपकी सद्भावना का ‘झीना आवरण’ जिस दिन ‘तार-तार’ हो जाएगा,
‘ आपके  व्यंग  बाण , ताने , उलाहने ‘ , स्वयं  सामने  आ  जाएंगे’ !
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जरा सोचो
‘सफेद  झूठ’  प्यार  से  बोलोगे  तो ‘ गले ‘ ‘ में  उतरेगा ,  पछताओगे,
‘सच’  का  स्वाद ‘कड़वा’  जरूर  है, ‘आनंद  की  अनुभूति’  उसी  में  है’ !
[8]
मेरा  विचार
” प्राणियों  में  ‘जीवन  शक्ति’  का  संचार  तभी  होगा  जब  हम  अपनी  ‘त्रुटियों , भूलो , न्यूनताओ ‘,  को  दूर  करेंगे  !                                                    ‘भाग्यशाली’  नहीं  ‘ कर्मकार ‘  बने  रहने  का  प्रयास  ही  ‘ सार्थक  जीवन’  है  ” !
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