Home ज़रा सोचो ‘इन संतों के मेले में दर्द , उलझनें, गरीबी’ ‘उलझी रहती हैं ‘|

‘इन संतों के मेले में दर्द , उलझनें, गरीबी’ ‘उलझी रहती हैं ‘|

1 second read
0
0
1,192

ये   कौन   लोग   हैं   ?   कौन   होतें   हैं   आशा  राम   बापू   के   लिए   बेसुध होकर   रोने   वाले.  .राम   रहीम   के   लिए   कुछ   भी   फूंकने   वाले  ..राधे     मां   का   फाइव   स्टार  आशीर्वाद   लेने   वाले  |

.राम   पाल   के   लिए  अपनी जान   तक   दे   देने   वाले.  निर्मल   बाबा   की   हरी   चटनी   खाकर   अरबपति बन   जाने   वाले.  .?

दर  असल   इस   भीड़   के   मूल   में   दुःख   है.  .अभाव   है  .  गरीबी   है.  .और शारीरिक   मानसिक   शोषण   है  ..अहंकार   के   साथ   कुछ   हो   जाने   की तम्मना   है  |

एक   ऐसा   विश्वास   है   जिस   पर   आडंबरों   की   फसल   लहलहाती   है  ..आप   जरा   ध्यान   से   देखेंगे   तो   पाएंगे   कि   ऐसे   भक्तों   की   संख्या      में   ज्यादा   संख्या   महिलाओं  ,   गरीबों  ,दलितों   और   शोषितों   की   है..इनमें   कोई   अपने   बेटे   से   परेशान   है   तो   कोई   अपने   बहू   से     किसी   का   जमीन   का   झगड़ा   चल   रहा   तो   किसी   को   कोर्ट  -कचहरी   के   चक्कर   में   अपनी   सारी   जायदाद   बेचनी   पड़ी   है  .किसी   को   सन्तान चाहिए   किसी   को   नौकरी ,  यानी   हर   आदमी   एक   तलाश   में   है.  .ये भीड़   रूपी   जो   तलाश   है  .  ये   धार्मिक   तलाश   नहीं   है .  ये   भौतिक  लोभ की   आकांक्षा   में   उपजी   प्रतिक्रिया   है  ।

जिसे   स्वयँ   की   तलाश   होती   है   वो   उसे   भीड़   की   जरूरत   नहीं   उसे   तो   एकांत   की   जरूरत   होती   है..|
वो   किसी   रामपाल   के   पास   नहीं   ,  किसी   राम   कृष्ण   परमहंस   के   पास   जाता   है  ..वो   किसी   राम   रहीम   के   पास   नहीं  ..रामानन्द   के    पास   जाता   है..  उसे   पैसा   पद   और   अहंकार   के   साथ   भौतिक अभी  प्साओं   की   जरूरत   नहीं  .,उसे   ज्ञान   की   जरुरत   होती   है.  |.

गीता   में   भगवान   कहते   हैं.—-. 
न   ही   ज्ञानेन   सदृशं   पवित्रम   – इह   विद्यते  |

अर्थात   ज्ञान   के   समान   पवित्र   और   कुछ   नहीं   है.  .न   ही   गंगा   न   ही ये   साधू   संत   और   न   ही   इनके   मेले   और   झमेले  |

Load More Related Articles
Load More By Tarachand Kansal
Load More In ज़रा सोचो

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

[1] जरा सोचोकुछ ही ‘प्राणी’ हैं जो सबका ‘ख्याल’ करके चलते हैं,अनेक…