[1]
जरा सोचो
जहां ‘बिछड़ने’ का रिवाज हो, ‘हमको’ वहां नहीं रहना,
एक बार ‘दिल’ लगा कर ‘उम्र भर” निभाने का इरादा है !
[2]
जरा सोचो
‘आपने’ ‘मुस्कुराने का मौका’ दिया, ‘दिल से शुक्रिया’,
‘बेसब्री’ का आलम इतना है , ‘ भूला ‘ नहीं जाता !
[3]
जरा सोचो
‘वृक्षारोपण’- ‘पर्यावरण शुद्धता’ और ‘सुदृढ़ता’ का प्रतीक है,
न जाने कितनों को ‘शुद्ध वायु’ ‘प्राणदायक’ सिद्ध होगी , सोचिये !
[4]
जरा सोचो
‘सीमा’ सहित ‘उम्मीद’ निश्चित एक ‘ऊर्जा का स्रोत’ है,
‘निराशा’ को ‘आशा’ में बदलने का सुंदर ‘प्रारूप’ है !
[5]
जरा सोचो
बड़े ‘बेदर्द” हो ‘बेहिसाब इंतजार’ के बाद भी नहीं आते,
हम तो ‘आप के नशे’ में डूबने को ‘तैयार’ बैठे हैं !
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जरा सोचो
जीवन का ‘हर पल’ वह ‘किताब’ है जो कुछ न कुछ ‘सिखाती’ है,
‘निर्भर’ है आप कुछ ‘सीखते’ हो या सिर्फ ‘पन्ने’ पलटते हो !
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जरा सोचो
‘बोल’- ‘प्यार’ के हों या ‘नफरत’ के, ‘दिल’ पर वार करते हैं,
‘नफरत’-‘निराशा’ से घेरेगी ‘प्यार’ चेहरे पर ‘मुस्कुराहट’ लाएगा !
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जरा सोचो
जब तेरी ‘हंसी’ बिखरती है, ‘मौसम’ रंगीन नजर आता है,
इन ‘ खुशनुमा पलों ‘ को समेटने की कोशिश करो !
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जरा सोचो
जब हम ‘जीते’- ‘गले’ लगा लिया, ‘हारते’ ही ‘किनारा’ कर लिया,
‘हार’ सुन कर ‘सांत्वना’ ही दे देते , ‘ अपनापन ‘ बचा रहता !
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