[1]
जरा सोचो
किसी के ‘मन की शांति’ चुरा कर कौन सा ‘तीर’ चलाया आपने ?
‘सहयोग की भाषा’ समझ लेते, ‘दुखती रग’ पर ‘मरहम’ लगा देते !
[2]
जरा सोचो
आपकी ‘संगत’ से कोई ‘सुधरने’ लगा , तो आप ‘सर्वश्रेष्ठ’ प्राणी हो,
आपसे मिल कर ‘ व्यभिचार ‘ उभरने लगे तो ‘निकृष्ट’ प्राणी हो !
[3]
जरा सोचो
‘राहत’ हो या ‘चाहत’ , ‘अपनों की नियामत ‘ है , उनका ही ‘करिश्मा’ है,
‘रूठना /मनाना’ साथ चलते हैं, ‘मुस्कुरा कर’ ‘हर समस्या’ निबटनी चाहिए !
[4]
तत्काल पाने की लालसा , लोन का प्रचलन,
उधार की जिंदगी को, बढ़ावा रोज मिलता है,
हताश, निराश और तनावग्रस्त जीवन का अवसाद,
परिवार का सहयोग व राहत, उपलब्ध नहीं होती’,
नशा, बुरी संगत और लापरवाही, चरम सीमा पर,
पलायन , हत्या , आत्महत्या , रोज की समस्या है,
नकारात्मकता ,निंदक, हिंसक ,आक्रामक बनाती है,
इसलिए परिणाम -परिवार का विनाश नहीं तो क्या है,
बेहतर है धीमी गति से परिश्रम व ऊपर उठने का प्रयास,
धैर्य,दया,शांति,संतोष सहनशीलता के भाव जागृत करो,
स्पर्धा से जीतना और विपरीत हार का स्वाद चखते रहो,
दुख, परेशानी, झेलने की ताकत, विकास पर ले जाएगी,
सही राह अपनाना, मौन की परिभाषा सीखना, बैर -वैमनस्य घट आएगा,
अपने देश में स्नेह और अपनापन फले-फूलेगा, हम सभी जी जाएंगे ‘ !
[5]
जरा सोचो
‘सहारा’ मिला तो ‘ जीने का सबब ‘ और सुंदर बन गया ,
अगर ‘खुद’ किसी का ‘सहारा’ बन जाते, ‘मन’ दिल बहार हो जाता !
‘सहारा’ मिला तो ‘ जीने का सबब ‘ और सुंदर बन गया ,
अगर ‘खुद’ किसी का ‘सहारा’ बन जाते, ‘मन’ दिल बहार हो जाता !
[6]
मैं कितना भाग्यशाली हूँ , ख़यालों में बाँके बिहारी बसाये रखती हूँ ,
क्या मजाल, जरा सी चूक हो जाए, गुनगुनाने से फुर्सत नहीं मिलती |
[7]
जरा सोचो
वो हर ‘सैनिक’ ‘हीरो’ है जो ‘देश हित’ में ‘जान की बाजी’ लगाते हैं,
‘फिल्मी कलाकार’ को ‘हीरो’ कहना, ‘कौन सी सभ्यता’ का ‘उसूल’ है !
वो हर ‘सैनिक’ ‘हीरो’ है जो ‘देश हित’ में ‘जान की बाजी’ लगाते हैं,
‘फिल्मी कलाकार’ को ‘हीरो’ कहना, ‘कौन सी सभ्यता’ का ‘उसूल’ है !
[8]
जरा सोचो
‘मुमताज’ जाने के बाद ‘ताजमहल’ बनाया गया, कोई ‘खास बात’ नहीं इसमें,
जिन्हें ‘खुश’ देखना हो , आज से ही ‘ खुशी ‘ से ‘ नवाजना ‘ शुरू कर दो !
‘मुमताज’ जाने के बाद ‘ताजमहल’ बनाया गया, कोई ‘खास बात’ नहीं इसमें,
जिन्हें ‘खुश’ देखना हो , आज से ही ‘ खुशी ‘ से ‘ नवाजना ‘ शुरू कर दो !
[9]
जरा सोचो
‘टैक्स’ भरने वाले ‘आंदोलन’ नहीं करते, ‘सब्सिडी’ वाले ‘कसर’ नहीं छोड़ते,
‘मुफ्तखोर’ के मुंह ‘खून’ लगा रहता है , ‘शांति’ कहां से आएगी , सोचो ?
‘टैक्स’ भरने वाले ‘आंदोलन’ नहीं करते, ‘सब्सिडी’ वाले ‘कसर’ नहीं छोड़ते,
‘मुफ्तखोर’ के मुंह ‘खून’ लगा रहता है , ‘शांति’ कहां से आएगी , सोचो ?
[10]
जरा सोचो
‘हमें’ अपनी ‘लफंडरबाजी’ भी बड़ी ‘नमकीन’ लगती है,
‘जवानी’ में ‘गुरूर’- ‘लाजमी’ सा हो गया लगता है अब !
‘हमें’ अपनी ‘लफंडरबाजी’ भी बड़ी ‘नमकीन’ लगती है,
‘जवानी’ में ‘गुरूर’- ‘लाजमी’ सा हो गया लगता है अब !