[1]
‘तू कैसा सपूत है मेरा ,मुझे याद करने की फुर्सत नहीं तुझको’,
‘तेरी आत्मा में निवास करता हूँ, अंदर झांक तो लेता कभी ‘|
[2]
‘आदर्श माता-पिता’ ‘आदर्श गुरु’,’आदर्श पत्नी’,’आदर्श भाई’ ,
‘संस्कार भी आदर्श ‘जिसके हों’ , ” मां की कृपा बरसती है ‘|
[3]
जरा सोचो
लोगों की ‘बातों’ को ‘दिल’ से लगाओगे तो ‘जल’ जाओगे,
‘सुकून की तलाश’ ही ‘सही जीना’ सिखाएगी तुझको’ !
[4]
जरा सोचो
आपको ‘ इस्तेमाल ‘ करने वाले ‘ढूंढ ‘ ही लेंगे तुम्हें,
सिर्फ ‘परवाह’ करने वालों की ‘तलाश’ रख, ‘जी’ जाएगा !
[5]
जरा सोचो
‘ ज्ञान’ सबको ‘शिक्षित’ बनाए, कभी ‘चोरी’ नहीं जाता,
‘लक्ष्मी’ का क्या भरोसा ?आज ‘तेरी’ कल ‘पड़ोसी’ की’ !
[6]
जरा सोचो
कभी ‘नमक’ सी तो कभी ‘नीम’ सी लगती है ‘जिंदगी’,
‘शहद’ सी जिंदगी के ‘परखच्चे’ उड़ गए हैं आजकल’ !
[7]
“अदभुत ” तुम्हारा स्वरुप है ,” दाती ” मैं क्या करूँ ,
नत-मस्तक हो कर चरणों में , बस आ पड़ा हूँ मैं |
[8]
जरा सोचो
‘किसी की तारीफ’ करने हेतु ‘नम्र दिल’ की जरूरत है,
‘बुराई’ करने हेतु ‘किसी योग्यता’ की जरूरत नहीं’ !
[9]
जरा सोचो
‘पुरानी यादें, कसमे-वादे और कदम’, सोच समझकर ही उठाइए,
अपना ज्ञान, विद्या और चरित्र की ‘गरिमा’ बचनी ही चाहिए’ !
[10]
जरा सोचो
किसी को ‘पराजित’ करना है तो ‘मौन’ रखो, ‘बहस’ किसलिए ?
‘बहस’ कार्य बिगाड़ देगी, ‘मौन’ की ‘सहनशक्ति’ बेहद ‘प्रबल’ !