‘सियासत के मलबे में दुर्गंध ऐसी ‘, ‘शौकीनों की नाक पर भी रुमाल है’ ,
‘गला फाड़ कर”एक-दूसरों की कलई खोलने में’ ‘शर्म नाम की चीज नहीं’ ,
हाय ! ‘राष्ट्र की किस्मत में ऐसे लोग’, ‘जो लोक-लज्जा छोड़ धन लोलूप हैं ‘
‘ये शासन का अपहरण उद्योग नहीं’,तो ‘क्या इसे राष्ट्र-‘हित का पर्यायवाची कहें’ |