[1]
जरा सोचो
‘ मन ‘बुरा काम’ करने को तुरंत भागता है,
‘नेक काम’ से मुंह छुपाता है,
यह ‘हीन भावन’ और हीनता’ दर्शाता है, कभी ‘उभर’ नहीं सकते’ !
[2]
जरा सोचो
‘यदि दिल से ‘सरल’ और ‘तरल’ बने रहे,
‘ सभी के ‘ दिलों ‘ में ‘ घर ‘ बना लोगे ‘ !
[3]
*ज़िंदगी में पहले ऐसा पंगा नहीं देखा।*
*हवा शुद्ध है पर मास्क पहनना अनिवार्य है*।
*सड़कें खाली हैं पर लॉन्ग ड्राइव पर जाना नामुमकिन है।*
*लोगों के हाथ साफ हैं पर हाथ मिलाने पर पाबंदी है।*
*दोस्तों के पास साथ बैठने के लिए वक़्त है पर उनके दरवाजे बंद हैं।*
*गंगा का पानी साफ हो गया है पर उसे पीना किस्मत में नहीं है!*
*अपने अंदर का कुक दीवाना हुआ पड़ा है पर किसी को खाने पर बुला नहीं सकते।*
*सोमवार को भी ऑफिस जाने के लिए दिल मचल रहा है पर ऑफिस में लंबा वीकेंड है।*
*जिनके पास पैसे हैं उनके पास खर्च करने के रास्ते बंद हैं।*
*जिनके पास पैसे नहीं हैं उनके पास कमाने के रास्ते बंद हैं।*
*पास में समय ही समय है लेकिन अधूरी ख्वाहिशें पूरी नहीं कर सकते।*
*दुश्मन जगह-जगह है पर उसे देख नहीं सकते।*
*कोई अपना दुनिया छोड़कर चला जाए तो उसे छोड़ने जा भी नहीं सकते।*
*है तो सब-कुछ पर कुछ कर नहीं सकते।
[4]
जरा सोचो
‘ आंखों से न देखें , न कानों से सुने , तो दोनों ‘व्यर्थ’ है,
‘सत्य’ पर ‘विचार विमर्श’ नहीं करते, तो व्यर्थभार रूप हो ‘ !
‘ आंखों से न देखें , न कानों से सुने , तो दोनों ‘व्यर्थ’ है,
‘सत्य’ पर ‘विचार विमर्श’ नहीं करते, तो व्यर्थभार रूप हो ‘ !
[5]
जरा सोचो
‘सफलता’ के बाद ‘ढीले’ पड़े तो, निश्चित एक दिन ‘हार’ जाओगे,
‘सफलता’ के बाद ‘ढीले’ पड़े तो, निश्चित एक दिन ‘हार’ जाओगे,
‘लगातार सीखे, अपने काम की धार ‘पैनी’ करें, ‘अस्थिरता’ उचित नहीं’ !
[6]
जरा सोचो
‘ हाथ की लकीरों’ में जिंदगी की हर बात छुपी है या नहीं,
‘ हाथ की लकीरों’ में जिंदगी की हर बात छुपी है या नहीं,
‘हमारी ‘खुशी और गम’ के ‘लम्हे’ दिलों में जरूर बसते हैं’ !
[7]
जरा सोचो
‘ जो कहना था, कह नहीं पाए, यह ‘मर्यादा’ की नीव थी,
‘जो न कहना था कह बैठे, ‘बेहूदगी की पराकाष्ठा’ समझ’ !
‘ जो कहना था, कह नहीं पाए, यह ‘मर्यादा’ की नीव थी,
‘जो न कहना था कह बैठे, ‘बेहूदगी की पराकाष्ठा’ समझ’ !
[8]
जरा सोचो
‘विपरीत’ भावनाओं की ‘तपिश’ सभी महसूस करते हैं ,
‘घरों का वातावरण’ प्रेम से संभलता है, जरा सोचो’ !
‘विपरीत’ भावनाओं की ‘तपिश’ सभी महसूस करते हैं ,
‘घरों का वातावरण’ प्रेम से संभलता है, जरा सोचो’ !