Home शिक्षा इतिहास ” अढ़ाई दिन का झोपड़ा , अजमेर ” एक देश का स्वर्णिम इतिहास |

” अढ़ाई दिन का झोपड़ा , अजमेर ” एक देश का स्वर्णिम इतिहास |

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VEDIC Science        {  श्री  प्रथ्वीराज  सनातन  }  के  सौजन्य  से  उपलब्ध  |
अढ़ाई  दिन  का  झोंपड़ा ,  इस  स्थान  पर  संस्कृत  विद्यालय  ‘सरस्वती  कंठाभरण  महाविद्यालय’  एवं  विष्णु  मन्दिर  का  निर्माण विशालदेव  चौहान  ने  करवाया  था | इस  बात  का  प्रमाण  मस्जिद  के  मुख्यद्वार  के  बायीं  और  लगा  संगमरमर  का   संस्कृत  में       खुदा  हुआ  शिलालेख  है  और  इधर-उधर  बिखरी  सैकड़ों  देवी-देवताओं  की  मूर्तियां  मस्जिद  के  अंदर  खम्बों  पर  खंडित  मूर्तियां         भी  अलौकिक  है  ।
मोहम्मद  गौरी  ने  तराईन  के  युद्ध  में  पृथ्वीराज  चौहान  को  धोखे  से  हरा  दिया  उसके  बाद  पृथ्वीराज  की  राजधानी   तारागढ़     अजमेर  पर  हमला  किया ।  यहां  स्थित  संस्कृत  विद्यालय  में  रद्दो  बदल  करके  मस्जिद  में  परिवर्तित  कर  दिया । । इसका              निर्माण  संस्कृत  महाविद्यालय  के  स्थान  पर  हुआ ।  इसका  प्रमाण  अढाई  दिन  के  झोपड़े  के  मुख्य  द्वार  के  बायीं  ओर   लगा  संगमरमर  का  एक  शिलालेख  है   जिस  पर  संस्कृत  में  इस  विद्यालय  का  उल्लेख  है  । 
ये  अजीब  बात  है  मोहम्मद  गौरी  और     उसकी  सेना  संस्कृत  भाषा  से  अनभिज्ञ  थी  जिस  कारण  वो  इसे  पढ़  नही  पाए   |        जिससे  ये  पत्थर  नष्ट  होने  से  बच  गया  ।  ऐसा  माना  जाता  है  कि  यहाँ  चलने  वाले  ढाई  दिन  के  उर्स  के  कारण  इसका               नाम  पड़ा  । 
ये  भी  अजीब  संयोग  है  कि ” अढाई   दिन  का  झोपड़ा ” से  मशहूर  इस  इमारत  के  अंदर  कही  कोई  झोपड़ा  नही  है  फिर  भी             इस  जगह  को ” झोपड़ा ”  कहा  जाता  है  । 
यहाँ  भारतीय  शैली  में  अलंकृत  स्तंभों  का  प्रयोग  किया  गया  है ,  जिनके   ऊपर  छत  का  निर्माण  किया  गया  है  ।  मस्जिद  के  प्रत्येक  कोने  में  चक्राकार  एवं  बासुरी  के  आकार  की  मीनारे  निर्मित  है  ।  90  के  दशक  में  इस  मस्जिद  के  आंगन  में  कई  देवी – देवताओं  की  प्राचीन  मूर्तियां  यहां-वहां  बिखरी  हुई  पड़ी  थी  जिसे  बाद  में  एक  सुरक्षित  स्थान  रखवा  दिया  गया  ।
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सच्चाई   यही   है   कि   यह   किसी   भी   प्रकार  से  मस्जिद  नजर  नहीं  आती  इसकी  वास्तु  कला  शिल्प  कला  और  चारों  तरफ  हिंदू             देवी  देवताओं  की  लगी  मूर्तियां  इसका  प्रांगण  इसकी  छत  हर  प्रकार  से  सनातन  संस्कृति  की  है  |
हिंदू  मुस्लिम  वास्तुकला  नाम  की  कोई  चीज  नहीं  है  |  हर  राष्ट्र  की  अपनी  एक  संस्कृति  होती  है  और  वहां  की  एक  अपनी              वास्तु  कला  और  शिल्प  कला  होती  है | भारत  में  या  भारत  से  बाहर  जितने  भी  मंदिर  और  धरोहर  बनी  हुई  है  उनकी  वास्तु       कला  और  शिल्प  कला  जो  है  वह  हमारी  है  और  वह  वास्तु  कला  और  शिल्प  कला  हवा  में  नहीं  बनाई  जाती  |  उसके   हमारे      पास   प्रमाण  है |  शास्त्र   है  शास्त्रों  के  आधार  पर  वह  सारी  शिल्प  कला  और  वास्तुकला  तैयार  की  जाती  है  |
 ★इतिहास★
इस  स्थान   पर   संस्कृत   विद्यालय   ‘सरस्वती   कंठाभरण   महाविद्यालय’   एवं  ‘ विष्णु   मन्दिर ‘  का   निर्माण   विशालदेव   चौहान        ने   करवाया   था  |
अजमेर   राजस्थान
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