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अश्लीलता का ज़ोर है सामाजिक मूल्य धराशायी हो गए हैं आजकल

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अश्लीलता का ज़ोर है’ ,’ सामाजिक मूल्य’ ‘धराशायी हो गए हैं आजकल’ ,
‘भाई-चारा’’,कुप्रभावों से अछूता नहीं’ ,’मानवता’ ‘कलंकित हो रही है हर घड़ी ’ ,
‘पथ-भ्रष्ट होता’ ‘ किशोर मन’ ‘वासनाओं में घसीटा ‘ जा रहा है – ‘क्या करें’ ?
‘भटकाव’ ‘बना पारदर्शी’ ‘आजकल देश का भूगोल’ ‘बदला जा रहा है’ रात दिन’ |

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