जब बच्चे को अपने पैरों पर चलाने की बारी आती हैँ … तब माँ बाप .. यह ज़ानते हुए भी कि उसे चोट लग सकती हैँ — उसे थोड़ा सा सहारा देकर छोड देते हैँ .. अकेले चलना सिखने के लिये .. वो गिरता हैँ .. चोट भी खाता हैँ .. माँ बाप का दिल भी रोता हैँ .. मगर उसकी भलाई के लिये वो ये दर्द भी सह लेते हैँ .. जब वो अपने दम पर चलना शुरू कर देता हैँ तो .. माँ बाप की खुशी का ठिकाना नहीं रहता …
यही फंडा … बाकी जीवन में भी काम आता हैँ ..
कई दफा .. जब हमे किसी की सहायता की ज़रूरत होती हैँ और वो हमे मिल भी जाती हैँ .. चाहे अपने से या अजनबी से .. उस मदद की वजह से हमारी ज़िन्दगी फिर से पटरी पर आने लग जाती हैँ . .फिर अचानक पता चलता हैँ कि .. वो मदद वाले हाथ .. आपसे दूर हटा लिये गये हैँ … आप गुस्से में उस मददगार को कोसने लगते हैँ कि. . बीच राह में साथ छोड दिया ..
जबकि .. हकीकत ये भी हो सकती हैँ कि. . वो मददगार आपसे इतनी प्रीत रखता हो .. उस माँ – बाप की तरह .. जो आपको ऊंगली पकड कर.. उठा कर .. सही राह पर डाल कर .. सोचता हैँ कि .. अब तुम्हें खुद हीं .. बाकी सफर तय करना हैँ .. वो बराबर तुम पर नजर रखे हुए हैँ .. वो उस खास पल का बेशब्री से इंतजार कर रहा हैँ .. जब तुम सहीं में अपने पैरों पर खडे हो जाओगे ..
अब ज़रा .. सिक्के के दूसरे पहलू पर आ जाते हैँ …
जब आप इतने सम्पन हो जाते हैँ कि हर कोई . . अपना पराया.. आपकी तरफ आशा भरी नज़रों से देखने लगता हैँ ..
आप सहारा भी देते हैँ .. कुछ उस थोडे से सहारे से .. आगे बढ़ जाते हैँ … ज्यादातर .. उस सहारे के इतने आदि हो जाते हैँ कि.. आपके थोड़ा सा हाथ पीछे खिंचते हीं … त्राही -त्राही मचा देते हैँ .. . समाज में आपको घमंड़ी कह कर बदनाम करने लग जाते हैँ ..
जबकि आपका भी. . मकसद उन माँ -बाप की तरह हीं हैँ .. जो बच्चे के चलने का इंतजार करते हैँ …
— ये दुविधा हम में से ज्यादातर ने झेली हैँ .. कोई हमारी मजबूरी व नीयत समझना हीं नहीं चाहता … हमारी भावना रहती हैँ कि .. हमारे अपने थोड़ा सा तो साहस करें आगे बढने का .. ज़िससे हम उनका हाथ पकड कर साथ ले चले … मगर नहीं … शेर के पट्टे .. खुद चलना तो दूर .. आपके पैरों में भी बेडियां डालने को तैयार रहते हैँ …
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आशा हैँ ये लेख पढ़ कर कुछ रिश्तों की गांठ खुलेगी व कुछ बच्चे खुद चल कर माँ -बाप के मन को आनंदित कर देंगे …