Home ज़रा सोचो अपने दीपक स्वंम बनो, आशा के दीप जलाए रक्खो | खूबसूरत ज़िंदगी ‘जी’ जाओगे |

अपने दीपक स्वंम बनो, आशा के दीप जलाए रक्खो | खूबसूरत ज़िंदगी ‘जी’ जाओगे |

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जरा सोचो
‘आशा के दीप’ जो प्राणी ‘बुझाए’ रखता है, पूर्णतया ‘निष्क्रिय’ है,
अपने ‘दीपक’ स्वयं बनो, ‘भूलें’ मत करो, ‘शान’ से ‘जी’ जाओगे !

[2]

जरा सोचो
जितना  ‘ जखीरा ‘  तुम्हारे  पास  है ,’ अनेकों ‘  तरसते  हैं  उसके  लिए,
फिर भी ‘शिकायत’ करने की ‘आदत’ है,’खुदा’ का ‘शुक्रिया’ नहीं करते, गजब !

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‘आदमी- आदमी  से  मिलने  में  कतराने  लगे’ ‘कारोना’ पीछे  न  लग  जाए,
‘मुश्किलों’  का  दौर  है , प्यार , मनुहार , ‘ नजरों  तक  सिमट  गया  है अब’ !
[4]
जरा सोचो
जब  भी  किसी  का  ‘भला’  किया  ‘मैं’  ‘लाभ’  में  ही  रहा,
किसी  को  दर्द  में  जब ‘दया  भाव’ आया, आजतक  याद’ आया  हूँ !
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 जरा सोचो
‘समस्या’  के  हल  के  ‘विकल्प’  और  ‘वस्तुओं  की  खोज’ ही आगे  बढ़ाएगी,
‘तनाव’  और  ‘चिंता’  अवरोधक  हैं , ‘ भाग्य’  भी  ‘बहादुर’  का  साथ  देता  है !
[6]
जरा सोचो
दूसरों की ‘कमियां’ तलाशने वाला, किसी को ‘अच्छा’ नहीं लगता,
ऐसी  ‘ प्रवृत्ति ‘  के  लोग  ही ,  ‘रिश्ते’  टूटने  की  वजह  बनते  हैं  !
[7]
जरा सोचो
‘सोच’ में दम नहीं तो ‘खुशी’ खतम, ‘कमजोरी’ उजागर होगी,
‘ शांत ‘  और  ‘ धैर्यवान ‘  ही ‘ सफलता ‘  के  सोपान  छूते  हैं !
[8]
जरा सोचो
न  तो  मैं  ‘ फरेबी ‘  हुं , न  किसी  को  ‘ नफरत ‘  परोसता  हूं ,
‘प्यार’ का ‘फनकार’  हूं फिर  भी, ‘नजरें’ घुमा  के ‘क्यों’  देखते  हो  मुझे !
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